मंगलवार, 8 नवंबर 2016

ख्वाहिश



ख्वाहिश


सुनो,
मुझे कुछ जुगनू ला दो....
टिमटिम करते जुगनू ला दो ।
जुगनू ?
पागल हो तुम ।
चंदा ला दूँ ? तारे ला दूँ ?
एक - दो नहीं, सारे ला दूँ ?
नहीं,
मुझे बस जुगनू ला दो ।

उन्हें सजा लूँगी जूड़े में,
और टाँक लूँगी आँचल में....
कभी पहनकर उनके गहने,
तुम से मिलने आऊँगी मैं ।
बस थोड़े से जुगनू ला दो,
टिमटिम करते....

और रात की डिबिया में भर,
कुछ को रख लूँगी सिरहाने ।
बाँचूँगी फिर वो सारे खत,
जो लिखे थे, तुमने मुझको ।
टिमटिम करते जुगनू ला दो....

सुनो,
मुझे कुछ जुगनू ला दो ।
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