रविवार, 13 फ़रवरी 2022

नश्वर हर रेशा बंधन का !

मैं जीवन के शब्दकोष में

अर्थ ढूँढ़ती अपनेपन का !

भीतर जलती एक चिता है,

बाहर उत्सव, गीत सृजन का।


हृदय बावरा अब भी सोता

स्मृतियों को रखकर सिरहाने

फिर पुकार बैठेगा तुमको

यह जब - तब, जाने - अनजाने !

आस अभी, शायद चुन पाऊँ

टुकड़ा-टुकड़ा मन दर्पण का !

भीतर जलती एक चिता है

बाहर उत्सव, गीत सृजन का।


नेह के नाते, कब बन जाते,

कब ये मन पगला जाता है !

कोई ना जाने, किस क्षण में

मिलना, बंधन कहला जाता है !

तन नश्वर, बंधन भी नश्वर,

नश्वर हर रेशा बंधन का !

भीतर जलती एक चिता है,

बाहर उत्सव, गीत सृजन का।







शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

'तब गुलमोहर खिलता है' - मेरा तीसरा कविता संग्रह

विघ्नहर्ता विनायक की असीम कृपा, मेरे कान्हा के अनुग्रह, माँ शारदे के कृपा कटाक्ष, गुरुजनों, माता-पिता, व पूर्वजों के आशीर्वाद से आज मेरे तीसरे कविता संकलन 'तब गुलमोहर खिलता है'  का प्रकाशन कार्य संपूर्ण हुआ और वसंत पंचमी के शुभ अवसर पर यह पाठकों के लिए उपलब्ध हो गई है। 

पुस्तक प्राप्त करने के लिए लिंक नीचे दे रही हूँ। ( लिंक पर जाने हेतु पुस्तक के नाम पर क्लिक करें )

पुस्तक प्रकाशक से प्राप्त करने के लिए लिंक :

तब गुलमोहर खिलता है

पुस्तक अमेजन से प्राप्त करने के लिए लिए लिंक :

तब गुलमोहर खिलता है

मेरी हर पुस्तक की तरह इस पुस्तक के प्रकाशन में भी आदरणीय अयंगर जी का अतुल्य व अमूल्य योगदान रहा। इस सहयोग को कभी विस्मृत नहीं किया जा सकता।

बुधवार, 2 फ़रवरी 2022

विशेष

 हर उस व्यक्ति के लिए

जो मेरे लिए विशेष रहा,

मैं कभी विशेष ना रही ।

हर एक विशेष प्रसंग पर,

मेरे विशेष लोगों ने 

अहसास कराया था

मुझे मेरे सामान्य होने का !

मेरी नजर में,

मेरा सामान्य होना ही

मेरी विशेषता थी,

पर वह विशेषता लोगों की नजर में

बड़ी सामान्य थी !

कोई विशेष विशेषता होती, तो

मैं भी विशेष होती किसी के लिए....