सोमवार, 31 जुलाई 2017

बाबुल मेरे !



सावन के बहाने, बुला भेजो बाबुल,
बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लग के ।।

नन्हें से पाँवों में, चाँदी की पायल,
पायल के घुँघरू, घुँघरू की रुनझुन !
रुनझुन मचलती थी, जब तेरे आँगन,
छोटी - छोटी खुशियों की बात रे !

बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लग के ।।

अम्मा से कहना, तरसे हैं अँखियाँ,
अँखियों में सपने, सपनों में सखियाँ,
सावन के झूले, मीठी सी बतियाँ !
पीहर की ठंडी सी छाँव रे !

बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लग के ।।

भैया को बहना की याद ना आए,
कैसे मगर, बहना बिसराए !
इक भैया मोरा, गया है बिदेसवा,
दूजे की नयनों को आस रे !

बचपन को कर लूँगी याद रे !
बाबुल मेरे !
तेरे कलेजे से लगके ।।
सावन के बहाने, बुला भेजो बाबुल !!!

शनिवार, 29 जुलाई 2017

बात सितारों की करती हूँ !

चलती तो धरती पर हूँ
पर बात सितारों की करती हूँ !
पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।

पिघल-पिघलकर ज्यों हिमराशि,
जलधारा बन बहती जाती
मधुर संदेशा वह पर्वत का,
खारे सागर को पहुँचाती ।
मैं भी कुछ नफरत के प्याले,
प्रीति-मधुर-रस से भरती हूँ !

पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।

कहती हूँ मन की कुछ पीड़ा,
लिखती हूँ दिल की कुछ खुशियाँ।
जीवन की बगिया से चुनकर,
लाती हूँ गीतों की कलियाँ ।
नागफनी के जंगल में, मैं
रंग नज़ारों के भरती हूँ !

पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।

रविवार, 23 जुलाई 2017

हर दौर गुजरता रहा

जिंदगी चलती रही,हर दौर गुजरता रहा,
इम्तहां पर इम्तहां ले, वक्त सरकता रहा ।

इस बार अलग था कुछ,अंदाजे-बयां उनका,
लफ्जों में छुपा खंजर,अब दिल में उतरता रहा।

आँखों में जो चमकते, टूटे वही सितारे,
हमराज मेरा, मेरे सब राज उगलता रहा ।

खुद नाव ने डुबोया जब बीच में दरिया के,
आया ना मेरा माझी, बस दूर से हँसता रहा ।

कच्चे घड़े सी ना मैं, छूते ही बिखर जाऊँ,
भट्टी में आफतों की, मजबूत दिल बनता रहा ।

कुछ तो दिया ना तूने ! चाहे दर्द हो या खुशियाँ,
हर पल तेरा शुकराना,दिल से निकलता रहा ।।
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गुरुवार, 20 जुलाई 2017

जिंदगी पर मत लिखो


जिंदगी पर मत लिखो अब,
जिंदगी रहने ही दो !
गर खुदा से प्यार ना हो,
बंदगी रहने ही दो !!!
        जिंदगी पर मत लिखो...
लाख मोड़े पैर,
चादर कम हमेशा ही रही।
बैल कोल्हू के बने
पर मार महँगाई गई !
मत बनो हमदर्द,
झूठी सादगी रहने ही दो !!!
        जिंदगी पर मत लिखो...
तुम मनाओ ईद, दीवाली !
सजाओ आशियाँ ।
हम तो बेघर,रास्तों पर,
रहते जैसे शहन्शाह !
बेख़ुदी में जी तो लेंगे,
बेख़ुदी रहने भी दो !
        जिंदगी पर मत लिखो...
इस जहाँ में जब से आए,
ढो रहे अपना सलीब ।
लोग बदले, दौर बदला,
बदला ना अपना नसीब !
मत दिखाओ और सपने
दिल्लगी रहने ही दो !!!
          जिंदगी पर मत लिखो...

सोमवार, 17 जुलाई 2017

बादल से संवाद

मानव :
"बादल, क्यों करते हो 
इतना पक्षपात ?
कहीं बाढ, दुर्भिक्ष कहीं,
क्यों मचा रहे उत्पात ?
माना, तुम झोली भर भरकर
नवजीवन ले आते हो,
लेकिन इन जीवनबूँदों को
सोच समझ तो बरसाओ।
सूखी धरती क्रंदन करती
पानी को ना तरसाओ ।

फटा कलेजा धरती माँ का,
दुष्कर हैं हालात !
बादल,क्यों करते हो 
इतना पक्षपात ?
ओ जल वितरण के ठेकेदार !
तुम पर भी छाया भ्रष्टाचार?

कहीं हरी चूनर पहने
इतराती है सावन तीज,
कहीं भाग्य को रोते हैं,
सूखे खेत, धरा निर्जीव !

अन्नदाता को अन्न के लाले,
कर्ज कराता आत्मघात ।
बादल,क्यों करते हो 
इतना पक्षपात ?"
बादल : ओ मानव,
सुनो जरा मेरे भी मन की,
पीड़ा मैं जानूँ जन जन की ...

मुझ पर क्यों इल्जाम लगाते,
तुम देखो अपनी करतूत !
कोप प्रकृति का महाभयंकर,
अब तुमको मिल रहा सबूत ।

नदिया सागर किए प्रदूषित
नहीं सुना वृक्षों का क्रंदन,
विषवृक्ष लगाकर स्वयं यहाँ,
पाना चाहते हो चंदनवन ?

तुमने अपने पैरों पर,
खुद किया कुठाराघात...
मानव, किया कुठाराघात !
हुए अब बेकाबू हालात !!!"




शनिवार, 15 जुलाई 2017

अर्धसत्य

'''अर्धसत्य'''
*********
जाने किसने तुम्हें यह
उपाधि दे दी -
'सत्यम,शिवम,सुंदरम'
कह दिया तुम्हें !
तुम सत्य भी हो
और सुंदर भी ?

सत्य हमेशा ही सुंदर हो,
ये जरूरी तो नहीं !
फिर तुम सत्य कैसे ?

सत्य के घिनौने, 
वासनामय और भूखे-नंगे 
रूपों का क्या ?
उनमें तुम्हारी कल्पना करूँ,
क्या सह पाओगे तुम ?

तुम तो मधुर हो ना !
"मधुराधिपते अखिलं मधुरम" !
फिर तुम सत्य कैसे ?

हर सत्य तो मधुर नहीं होता
अधिकतर तो कड़वा ही होता है!
तुम कटु सत्य हो गए,
तो मीठी बंसी कैसे बजाओगे ?

कैसे समझूँ मैं तुम्हें ?
कैसे जानूँ ?
मन घुट रहा है सवालों से !
अच्छा, इतना तो बता दो,
तुम्हें सत्य कैसे कहूँ ?
और 'अर्धसत्य' कहूँ,
तो मंजूर होगा क्या तुम्हें ?



शनिवार, 8 जुलाई 2017

स्वप्न-गीत


कभी कभी एक गीत
मेरे ख्वाबों में आता है
बिखेर देता है गुलाबों की खुशबू,
मन के हर कोने में !
बाँसुरी की मीठी तान सा
कानों में शहद घोल जाता है !

छा जाता है बादलों की तरह
उदास नयनों पर !
फिर पता ही नहीं चलता,
नयन बरस रहे हैं या बादल
भीगा मन सिहरता है,
गीत हँस देता है, झाँककर मेरी आँखों में !

समेट लेता है मुझे अपनी
हथेलियों में बड़ी नज़ाकत से,
जैसे चिड़िया छुपा लेती है
परों में अपने बच्चे को !
रख लेता है मुझे दिल के करीब
एक नर्म अहसास की तरह !

चाँद की मद्धिम रोशनी में
जादू के पंख लगाए,
किसी फरिश्ते की तरह
गीत उतरता है आसमां से
और थामकर हाथ मेरा
साथ चलने को मजबूर कर देता है !!!

सोमवार, 3 जुलाई 2017

इंद्रधनुष


इंद्रधनुष,
दे दो इजाजत,
आज तुम दे दो इजाजत !
अंजुरि भर रंग तुम्हारे
अपनी पलकों में सजा लूँ
और सब बेरंग सपने,
मैं जरा रंगीन कर लूँ !
श्वेत श्यामल जिंदगी में
तितलियों के रंग भर लूँ !

इंद्रधनुष,
आज रुक जाओ जरा,
दम तोड़ती, बेजान सी
इस तूलिका को,
मैं रंगीले प्राण दे दूँ,
रंगभरे कुछ श्वास दे दूँ !
पूर्ण कर लूँ चित्र सारे,
रह गए थे जो अधूरे !

इंद्रधनुष,
आज कुछ ऐसा करो ना !
रंग तुम्हारे हों असीमित
शब्द मेरे हों अपरिमित
हर नई संवेदना को
इक नया मैं रंग दे दूँ !
आज अपनी कलम को
मैं तुम्हारा संग दे दूँ !

इंद्रधनुष,
आज तुम तोड़ो प्रथा और
गगन से उतरो जमीं पर !
अनछुए रंगों में लिपटूँ ,
मैं तुम्हारे गले लगकर
मुस्कुरा लूँ,आज जी भर !
तुम अगर दे दो इजाजत !

इंद्रधनुष
आज तुम दे दो इजाजत !