शनिवार, 31 दिसंबर 2022

साल नहीं बीतता है....

श्वास - श्वास, दिवस - मास रीतते हैं हम,

हाँ, रीतते हैं हम !

साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !


बरखा में बूँद - बूँद कर, टपक रही है उम्र,

चुभती हवा में शिशिर की, सिहर रही है उम्र ।

फिर बसंत आगम पर रीझते हैं हम,

साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !


जीना तो कहीं खो गया पाने की होड़ में,

जीवन था एक, बीत गया जोड़-तोड़ मे ।

अब भी कहाँ खुशियों का गणित सीखते हैं हम,

साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !


कसमों से भरी टोकरी, वादों का पिटारा,

है अनुभवों की पोटली , यादों का पसारा ।

चंदन की तरह जग के लिए झीजते हैं हम !

साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !


गिनते हैं लोग, उम्र के कितने बरस जिए,

गिनते नहीं, उधड़े हुए कितने जखम सिए ।

प्रेम की बरसात में, क्या भीगते हैं हम ?

साल नहीं बीतता है, बीतते हैं हम !





रविवार, 25 दिसंबर 2022

याद आता है....

याद आता है, कहीं था 

सरल-सिमटा गाँव कोई !

सर छिपाकर रो सकें, था

एक ऐसा ठाँव कोई !


जिस गली में तुम रहा करते थे,

अब बाजार है वह ।

मोल कोई है लगाता,

पूछता है भाव कोई !


चहकता था यह पुलिन

अल्हड़ हँसी के गूँजने से ।

बह गया जल, शुष्क तट पर

अब नहीं है नाव कोई !


वर्षभर रहता यहाँ है,

अब तो मौसम पतझड़ों का।

रह गए हैं ठूँठ सारे

ले गया सब छाँव कोई !


कंटकों में थी कहाँ, क्षमता

हृदय को चीरने की।

छ्द्म स्मित कर, दे गया है

फूल बनकर घाव कोई !


प्राण की चौपड़ बिछी है,

श्वास के पासे पड़े हैं,

दाँव पर जीवन लगाकर

खेलता है दाँव कोई !

रविवार, 4 दिसंबर 2022

शिकवा

ना जाने किसको देखकर फितरत बदल गई
पल में बदल गया समां, जो रुत बदल गई । 

क्यों नजर चुराएँ, हमने क्या गुनाह किया ?
हम तो वही हैं, तेरी मुहब्बत बदल गई ।

अच्छा हुआ आगाह कर दिया जनाब ने
ये सोचकर चुप रह गए, आदत बदल गई ।

दीवार बन के वक्त बीच में खड़ा रहा
जब तक हटाएँ हम उसे, किस्मत बदल गई ।

बातों की क्या कहें, ये हवा के महल सी हैं
लफ्जों के हेर फेर से, अक्सर बदल गईं ।

ख्वाबों में खत लिखे थे उन्हें, ख्वाब ही थे वो
ख्वाबों के टूटते ही,  इबारत बदल गई ।
 
तस्वीर थी कोई जो, बसा रखी थी दिल में
उतरा जो रंग, यार की सूरत बदल गई ।

मौसम के बदलने से, बदलता है बहुत कुछ,
बदला नहीं वो, उसकी जरूरत बदल गई ।

 


शुक्रवार, 18 नवंबर 2022

रिश्ते

जितना बूझूँ, उतना उलझें

एक पहेली जैसे रिश्ते।

स्नेह दृष्टि की उष्मा पाकर,

पिघल - पिघलकर रिसते रिश्ते।


कभी लहू - से सुर्ख रंग के,

कभी हरे हैं हरी दूब - से ।

कभी प्रेम रंग रंगे गुलाबी ,

पल - पल रंग बदलते रिश्ते।


माटी में मिल वृक्ष उगाते

अँखुआए बीजों - से रिश्ते ।

खुशबू बनकर महक रहे हैं,

चंदन जैसा घिसते रिश्ते।


बूँदें बनकर सिमट गए हैं,

नयनों की गीली कोरों में ,

दो मुट्ठी अपनापन पीकर

सारी उम्र बरसते रिश्ते ।


पतझड़ के पत्तों सम झरते,

नवपल्लव से तरु भरने को ।

अपने प्रिय के हित की खातिर

स्वयं मृत्यु को वरते रिश्ते ।












रविवार, 13 नवंबर 2022

पनघट

यादों के सब पन्ने उड़कर

बिखरे जीवन सरिता तट पर,

सारी सखियाँ लौट गईं,

मैं एकाकी सूने पनघट पर !


इस पनघट पर मेल हुआ था,

हँसी - खुशी का खेल हुआ था।

साँझ हुई, पनघट के साथी

अपनी - अपनी राह चल दिए।

मैं पनघट को छोड़ ना पाऊँ,

अपना नाता तोड़ ना पाऊँ।

मेरे टूटे हृदय - कलश के

टुकड़े छिटके हैं पनघट पर !

सारी सखियाँ लौट गईं,

मैं एकाकी सूने पनघट पर !


पदचिन्हों पर किए समर्पित,

पारिजात के पुष्प निशा में।

भोर हुई, पदचिन्ह मिट गए,

खोजूँ भी तो, कौन दिशा में ?

पनघट तो फिर से चहकेगा,

फिर कोई राही बहकेगा,

किंतु मेरे नयनों की गागर

रिक्त रह गई इस पनघट पर।

सारी सखियाँ लौट गईं,

मैं एकाकी सूने पनघट पर !



रविवार, 17 जुलाई 2022

हिंदी भाषा: सुझाव और विमर्श

 


मुझे यह बताते हुए बहुत प्रसन्नता हो रही है कि आदरणीय माडभूषि रंगराज अयंगर जी की सातवीं पुस्तक "हिंदी भाषा : सुझाव और विमर्श" का प्रकाशन कार्य संपूर्ण हो चुका है और यह पाठकों के लिए अमेजन तथा बुक रिवर पर उपलब्ध है। 

पुस्तक यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। 

अमेजन से प्राप्त करने के लिए :

https://www.amazon.in/-/hi/dp/9355152256/

बुक रिवर से प्राप्त करने के लिए :

https://www.store.bookrivers.com/product/hindi-bhasha-sujhaw-aur-vimarsh/


इसके अलावा आप Rangraj Iyengar जी से  

84620 21340 इस नंबर पर संपर्क कर उनसे भी पुस्तक प्राप्त कर सकते हैं।

यह पुस्तक पूरी तरह से हिन्दी भाषा को समर्पित है। विशेषकर बच्चों को हिंदी भाषा की अच्छी शिक्षा देना और उसके लिए शिक्षक शिक्षिकाओं को विभिन्न विधाओं से समृद्ध करना ही इस पुस्तक का प्रमुख ध्येय है। हिंदी क्यों सीखें, कैसे सिखाएँ,उच्चारण पर ध्यानाकर्षण, बोलना - पढ़ना - लिखना जैसे मुख्य विषयों पर विशेष जोर दिया गया है।राष्ट्र भाषा - राजभाषा में अंतर स्पष्ट किया गया है ।हिंदी वर्णों के सही उच्चारण के लिए उदाहरण सहित विशेष तकनीक का उल्लेख किया गया है जिससे छोटी उम्र और कक्षाओं में बच्चों को सही उच्चारण सिखाया जा सके।

हिंदी की एक पूरी लेख मंजूषा पाठकों को एक जगह उपलब्ध कराई गई है।

देश में हिंदी की दशा का उल्लेख करते हुए उसे सुधारने के तरीकों पर भी चर्चा और सुझाव इस पुस्तक में उपलब्ध हैं । व्यवहारिक हिंदी के गुण दोषों की भी चर्चा है। परभाषा शब्द और गुणों को अपनाने की अनुशंसा की गई है।

भारत के विभिन्न राज्यों व क्षेत्रों में हिंदी के उच्चारण पर एक लेख में संदर्भ सहित विशेष चर्चा की गई है और सुझाव है कि हालातों को समझते हुए हम लोगों को सही उच्चारण की तरफ प्रेरित करें ,न कि उन पर हँसें।

संक्षिप्त में कहा जा सकता है कि पुस्तक हिंदी के विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए एक अत्यंत ही उपयोगी दस्तावेज है।


सोमवार, 6 जून 2022

तुमको पाती प्रिये....

तुमको पाती प्रिये, मैं कहाँ से लिखूँ ?
किसी ने मेरी, लेखनी छीन ली।

मेघ सुधियों के बेरुत  बरसने लगे,
ताल नयनों का बरबस छ्लकने लगा !
भीगने से डरी, मेरी निंदिया परी,
हर निशा, जागरण का महोत्सव हुआ।

घिर गई है तिमिर से हृदय की धरा,
प्रेम के चाँद की चाँदनी छीन ली। 
तुमको पाती प्रिये, मैं कहाँ से लिखूँ ?
किसी ने मेरी, लेखनी छीन ली।

पुष्प की पांखुरी, एक एक कर झरी
वृंत्त अब भी क्यों पौधे से आबद्ध है ?
नोंच पत्तों को पागल पवन पतझड़ी
कहती, शाश्वत भला कौन संबंध है !

अब बदलते हुए मौसमों ने यहाँ
कोकिलाओं से मधुरागिनी छीन ली !
तुमको पाती प्रिये, मैं कहाँ से लिखूँ ?
किसी ने मेरी, लेखनी छीन ली।

डालकर अस्त्र सारे, पराभूत हो, 
नेह का दीप बुझने को है अग्रसर !
किंतु मिटने से पहले क्षणिक मान में,
आस की लौ हुई थी जरा सी प्रखर !

स्नेह का अंत ही दीप का अंत है,
ज्योत कैसे जले, रोशनी छीन ली ।
तुमको पाती प्रिये, मैं कहाँ से लिखूँ ?
किसी ने मेरी, लेखनी छीन ली।


शनिवार, 30 अप्रैल 2022

हुड़दंग मत करो भई !

रंग मेरे बजरंग का 

बदरंग मत करो भई,

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!


है अगर लड़ना तुम्हें

आतंकियों से तुम लड़ो

है अगर पढ़ना, तो पाठ 

प्रेमभाव का पढ़ो ।


मारुती को मत बनाओ 

तुम कभी बिचौलिया,

मानस में हैं बसे हुए 

भगवान राम औ' सिया ।


तुच्छ कार्य के लिए 

उपयोग ना उनका करो,

वीर के गुणगान का 

तुम यूँ निरादर ना करो।


तुलसी की मंजरी का 

दुरुपयोग मत करो भई !

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!


रामबोला के हृदय की 

बेल जब फूली रही,

तब पवनसुत की कृपा से 

चालीसा सृजन भई ।


तुम चले अमृत कलश को 

रास्तों पर छींटने,

मोती मेरे तुलसी की 

माल के, चले बिखेरने ।


एक एक अक्षर है जिसका,

शक्तिमान बीज मंत्र !

कर रहे अपमान उसका 

कैसा है ये राजतंत्र ?


हनुमंत की स्तुति जरा 

हनुमंत को सुनाइए,

मन के कलुष धुल जाएँ

यदि राम को सुनाइए ।


गाने हैं गर विरोध में तो 

फिल्मी गीत गाइए,

बेहतर तो यही है कि 

बात प्यार से सुलझाइए।


पर... गीत रामदूत का 

बेढ़ंग मत पढ़ो भई।

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!


रंग मेरे बजरंग का 

बदरंग मत करो भई

हनुमानजी के नाम पर 

हुड़दंग मत करो भई !!!

    किसी भी राजनीतिक गतिविधि से इस कविता का कोई लेना देना नहीं है। बचपन से ही हनुमान चालीसा का पाठ घर में करते और सुनते आए हैं और उसके प्रति मन में अपार सम्मान तथा श्रद्धा है जिसको यहाँ मैने अभिव्यक्त किया । महाकवि तुलसीदास जी की यह रचना सदैव ही मन में श्रद्धा एवं शक्ति का संचार करती रही है।