शनिवार, 29 फ़रवरी 2020

पतवार तुम्हारे हाथों है

पतवार तुम्हारे हाथों है,
मँझधार का डर क्यों हो मुझको ?
इस पार से नैया चल ही पड़ी,
उस पार का डर क्यों हो मुझको ?

जीवन की अँधेरी राहों पर
चंदा भी तुम, तारे भी तुम ।
सूरज भी तुम, दीपक भी तुम,
अँधियार का डर क्यों हो मुझको ?

मैं पतित, मलीन, दुराचारी,
तुम मेरे गंगाजल कान्हा !
घनश्याम सखा तुम हो मेरे,
संसार का डर क्यों हो मुझको ?

जग तेरी माया का नाटक
तूने ही पात्र रचा मेरा,
जिस तरह नचाए, नाचूँ मैं
बेकार का डर क्यों हो मुझको ?

मैं कर्तापन में भरमाया
तू मुझे देखकर मुस्काया,
जब सारा खेल ही तेरा है
तो हार का डर क्यों हो मुझको ?

संसार का प्रेम है इक सपना,
है कौन यहाँ मेरा अपना !
तू प्रेम करे तो दुनिया के
व्यवहार का डर क्यों हो मुझको ?


मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

प्रतिकार लिख मेरी कलम !

नसों में खौलते लहू का,
ज्वार लिख मेरी कलम !
जुल्म और अन्याय का,
प्रतिकार लिख मेरी कलम !

मत लिख अब बंसी की धुन,

मत लिख भौंरों की गुनगुन,
अब झूठा विश्वास ना बुन,
लिख, फूलों से काँटे चुन !
बहुत हुआ, अब कटु सत्य
स्वीकार, लिख मेरी कलम !

जुल्म और अन्याय का,

प्रतिकार लिख मेरी कलम !

पुष्पों की पंखुड़ियों के,

वर्षा की रिमझिम लड़ियों के,
यौवन की उन घड़ियों के,
तारों की फुलझड़ियों के
गीत बहुत लिख लिए,
अंगार लिख मेरी कलम !

जुल्म और अन्याय का,

प्रतिकार लिख मेरी कलम !

गूँगे कंठ की वाणी बन,

जोश से भरी जवानी बन
हारे दिल की बन हिम्मत,
आशा भरी कहानी बन !
शोषित, पीड़ित, आहत के
अधिकार लिख मेरी कलम !

जुल्म और अन्याय का,

प्रतिकार लिख मेरी कलम !

रोता है अब जन-गण-मन,

लुटता है जनता का धन,
देश भूमि का सुन क्रंदन,
मत लिख पायल की छ्न-छ्न !
शिव का त्रिशूल, शक्ति की
तलवार लिख मेरी कलम !!!!!

जुल्म और अन्याय का,

प्रतिकार लिख मेरी कलम !

शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

शोर

मशीनों और वाहनों का 
रात-दिन गरजना,
घंटे-घड़ियालों, लाउडस्पीकरों का
शाम-सबेरे चीख-चीखकर
अपने-अपने धर्म की घोषणा करना,
रेलगाड़ियों का धड़धड़ाना !

कक्षा से मेरे निकलते ही बच्चों द्वारा
बेंचों का पीटे जाना,
मुँह पर लगे तालों को खोल-खोलकर
कक्षा के फर्श पर पटकना,
चिल्ला-चिल्लाकर मेरे अनुशासन 
की धज्जियाँ उड़ाना !

हजारों तरह के भोंपुओं का बजना,
कुत्तों का भौंक-भौंककर
मानव के आस्तित्व को धता बताना !
शक्ति प्रदर्शन, अधिकारों की माँग करते
नारों और जयजयकारों का गरजना !
गाहे-बगाहे, वजह-बेवजह 
ढोल नगाड़ों का बजना
भीड़ का बजबजाना !
उफ ! ये शोर !!!

नाजायज औलाद की तरह
पैदा होता है यह कानफाड़ू शोर !
कोई नहीं लेता इसका जिम्मा
फिर भी ये पलता रहता है,
बढ़ता रहता है, बढ़ता ही जाता है !

ये शोर मेरे कानों में गूँजता है,
मेरी आत्मा को दबोच लेता है,
मस्तिष्क पर हथौड़े सा प्रहार कर,
मेरी कल्पनाओं का अपहरण कर
विचार शक्ति को सुन्न कर,
अंधेरी खाई में खींच ले जाता है मुझे !

इसके भय से बंद रखती हूँ
खिड़कियाँ, दरवाजे, रोशनदान !
ये शोर मुझे पागल कर देगा
एक प्रेतात्मा की तरह 
मेरे प्राणों को खींचता, 
मेरा खून चूसता ये शोर !

मैं अब इसके साथ जीने के लिए
मजबूर हो चुकी हूँ !
मद्धम, मृदुल, मधुर और
सुकोमल आवाजों के लिए 
बहरी हो चुकी हूँ !!!

मुझे और कुछ नहीं सुनाई देता
ना वसंत की पदचाप
ना तुम्हारी पदचाप
ना मुहब्बत की पदचाप !!!

सोमवार, 3 फ़रवरी 2020

मौन दुआएँ अमर रहेंगी !

श्वासों की आयु है सीमित
ये नयन भी बुझ ही जाएँगे !
उर में संचित मधुबोलों के
संग्रह भी चुक ही जाएँगे !
है स्पर्श का सुख भी क्षणभंगुर
पर मौन दुआएँ, अमर रहेंगी।

बगिया में अनगिन फूल खिले,
अमराई भी है बौराई ।
बेला फूला, तरुशाखाएँ
पल्लव पुष्पों से गदराईं ।

फूलों के कुम्हलाने पर भी,
मधुमास चले जाने पर भी !
खुशबू को फैलानेवाली
मदमस्त हवाएँ अमर रहेंगी।
मौन दुआएँ, अमर रहेंगी।

नदिया में सिरा देना इक दिन
तुम गीत मेरे, पाती मेरी
धारा में बहते दीपों संग
बहने देना थाती मेरी !

स्मृति में पावन पल भरकर
लौ काँपेगी कुछ क्षण थरथर !
जलते दीपक बुझ जाएँगे
बहती धाराएँ अमर रहेंगी।
मौन दुआएँ, अमर रहेंगी।

ये भाव निरामय, निर्मल-से
कोमलता में हैं मलमल-से
मन के दूषण भी हर लेंगे
ये पावन हैं गंगाजल-से !

मत रिक्त कभी करना इनको
ये मंगल कलश भरे रखना !
ना तुम होगे, ना मैं हूँगी,
उत्सव की प्रथाएँ अमर रहेंगी ।
मौन दुआएँ, अमर रहेंगी।