रविवार, 27 नवंबर 2016

मेघ-राग


मेघ-राग
पुरवैय्या मंद-मंद,
फूल रहा निशिगंध,
चहूँ दिशा उड़े सुगंध,
कण-कण महकाए...

शीतल बहती बयार,
वसुधा की सुन पुकार,
मिलन चले हो तैयार,
श्यामल घन छाए....

चंचल दामिनी दमके,
घन की स्वामिनी चमके,
धरती पर कोप करे,
रुष्ट हो डराए....

गरजत पुनि मेह-मेह
बरसत ज्यों नेह-नेह
अवनी की गोद भरी
अंकुर उग आए....

अंग-अंग सिहर-सिहर,
सहम-सहम ठहर-ठहर
प्रियतम के दरस-परस,
जियरा अकुलाए....

स्नेह-सुधा से सिंचित,
कुछ हर्षित, कुछ विस्मित,
कहने कुछ गूढ़ गुपित
अधर थरथराए....

4 टिप्‍पणियां:

  1. अति सुंदर
    लयबद्ध शब्द चयन.
    साझा करने हेतु आभार.

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. अंग-अंग सिहर-सिहर,
    सहम-सहम ठहर-ठहर
    प्रियतम के दरस-परस,
    जियरा अकुलाए....

    स्नेह-सुधा से सिंचित,
    कुछ हर्षित, कुछ विस्मित,
    कहने कुछ गूढ़ गुपित
    अधर थरथराए.... वाह्ह्ह्ह बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌

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  4. बहुत ही खूबसूरत लयबद्ध लाजवाब मेघराग...
    वाह!!!

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