अब तो अपने दिल की मानो
बड़े-बड़े सुख पाने की
जब से मन में ठानी,
छोटी-छोटी खुशियों की
हमने दे डाली कुर्बानी...
अच्छे हैं वे लोग जिन्होंने
अपने दिल की मानी,
अपनी राहें खुद खोजी
दुनिया की रीत ना मानी ।
मन कुछ कहता हमने उसकी
बात ना कोई मानी,
नकली सुख के पीछे भागे
सच्चाई ना जानी ।
बड़ी देर से पता चला,
ये कैसी थी नादानी
छोटी छोटी खुशियों की...
बारिश की नन्हीं नन्हीं
बूँदें थीं हमें बुलाती,
फूल, तितलियाँ, चंदा, तारे
भेज रहे थे पाती ।
सागर की लहरें मिलने का
संदेशा भिजवाती,
ठंडी पुरवैय्या हमसे कुछ,
कहने को रुक जाती ।
पर हम व्यस्त रहे कामों में,
कदर ना उनकी जानी
छोटी छोटी खुशियों की...
द्वार पर थी रातरानी,
महकता था मोगरा
खुला आँगन, जैसे उपवन
पेड़-पौधों से हरा ।
मिटाकर बगिया बनाया
हमने अपना घर बड़ा,
शांति का मंदिर गिराकर
शीशमहल किया खड़ा ।
अब किसको दें दोष,
सूरतें लगती सब अनजानी
छोटी छोटी खुशियों की...
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