गुरुवार, 7 सितंबर 2023

कृष्ण कन्हैया ( दो प्रार्थना पुष्प )


मनमोहन नटखट कान्हा, घनश्याम मनोहर प्यारा !
मुरलीधर कृष्ण कन्हैया, गिरिधारी, नंद दुलारा !

वंशी को बजा बजाकर, गैयों को चरा चराकर,
माखन को चुरा चुराकर, बन गया सारे ब्रज का प्यारा !

गोकुल में माखन खाया, वृंदावन रास रचाया,
द्वारिका में राज्य बसाया, मथुरा में कंस संहारा !

जब विप्र सुदामा आया, मैत्री का मान बढ़ाया,
दो मुट्ठी चावल के बदले में राजकोष दे डारा ! 

द्रौपदी का चीर बढ़ाया, दुर्योधन मान घटाया,
साड़ी का अंत ना आया, तूने क्या जादू कर डारा !

अर्जुन को मित्र बनाया, गीता का ज्ञान सुनाया, 
जब अर्जुन हिम्मत हारा, तू बन गया परम सहारा !

जब किया भरोसा नरसी, तूने पल भर देर नहीं की,
नानीबाई का भाई बनकर, भक्त का काज सँवारा ।

कहते हैं दया का सागर, तू मोहन नटवर नागर
दर्शन के प्यासे नैना, ज्यों चंद्र चकोर निहारा !
तूने मुझसे ऐसा नाता जोड़ा है
तेरी खातिर हर नाते को तोड़ा है ।
जितना प्यार करूँ तुमसे मैं, थोड़ा है
तूने मुझसे ऐसा नाता जोड़ा है।।

झारी भरकर लाई हूँ गंगाजल से
स्नान करो मैं तुम्हें पोंछ दूँ आँचल से
जितना लाड लडाऊँ तुमको, थोड़ा है।।

तेरी बगिया की मैं मालिन बन जाऊँ
तेरी खातिर फूल सुनहरे चुन लाऊँ
तुझे सजाने ही, फूलों को तोड़ा है।।

दूध कटोरा भर लाई हूँ अब कान्हा
डाला है जिसमें मीठा मिश्री दाना
पी लो, काहे तुमने मुख को मोड़ा है।।

जन्म जन्म से तेरा मेरा नाता है
श्याम सलोने सपनों में तू आता है
मुझे अकेला तूने कभी ना छोड़ा है।।



सोमवार, 7 अगस्त 2023

स्वभाव

मत सिखाओ गुलाब को
कि वह काँटों से लड़ मरे,
कि वह काँटों की 
चुभन का जवाब दुर्गंध से दे ।

काँटों में खिलना, 
सुगंध और सौंदर्य से परिपूर्ण
एक गरिमामय जीवन जीना
यही गुलाब का स्वभाव है ।

मत सिखाओ कमल को
कि वह कीचड़ को गालियाँ दे,
कि वह कोसे अपने जन्म को ।

अपनी उपस्थिति से
कीचड़ का भी मान बढ़ाना,
कीचड़ से ऊपर उठकर
निर्लिप्त होकर जीना,
यही कमल का स्वभाव है।

मत सिखाओ नदिया को
कि सागर से मिलने खातिर
हजारों मील की अथक
यात्रा करना बेवकूफी है,
कि अपनी मिठास बचा रखे,
क्योंकि खारे सागर में समाकर
खारा हो जाना नितांत मूर्खता है ।

'तेरा तुझको अर्पण'
सागर में समर्पण ,
यही नदी का स्वभाव है ।

मत सिखाओ चिड़िया को
कि वह कोयल सा कुहुके,
कि वह मयूरपंखी होकर नाचे,
कि वह बाज, चील, गिद्ध हो जाए ।

थोड़े से दाने पाकर 
संतोष से फुदकना,
प्रेम और विश्वास का
तिनका - तिनका जोड़ना,
रुई से कोमल पंखों को फुलाकर
अपनी चूँ चूँ, चीं चीं में मुखर होना,
यही चिड़िया का स्वभाव है।


शुक्रवार, 4 अगस्त 2023

है ना जी ?

जितना ज्यादा मन रोएगा

उतना ओंठ हँसेगे जी

तुम अपने जीवन को जी लो

हम अपना जी लेंगे जी !


बच्चों जैसा पाया हमने

कुछ बूढ़ों का चाल चलन

दिखा खिलौना अधिक रंगीला

अब हम वो ही लेंगे जी !


दिखा रहे हैं जो हमदर्दी

वो हैं दर्द के सौदागर

तड़पोगे तुम , ये तो अपना

सौदा बेच चलेंगे जी !


उफनी नदिया, तो घर उजड़े

पर मानव की जिद देखो,

जब उतरेगी बाढ़, वहीं पर

फिर से लोग बसेंगे जी !


इक थैली के चट्टे बट्टे

छिपे हुए रुस्तम हैं सब

आरोपों प्रत्यारोपों के, 

जमकर तीर चलेंगे जी !