शनिवार, 26 नवंबर 2016

कवि की कविता


कवि की कविता

मन के एकांत प्रदेश में,
मैं छुपकर प्रवेश कर जाती हूँ.
जीवन की बगिया से चुनकर
गीतों की कलियाँ लाती हूँ।।

तुम साज सजाकर भी चुप हो
मैं बिना साज भी गाती हूँ
जो बात तुम्हारे मन में है
मैं कानों में कह जाती हूँ।।

तुम कलम उठा फिर रख देते
मैं ठिठक खड़ी रह जाती हूँ
तुम कवि, तुम्हारी कविता मैं
शब्दों का रस बरसाती हूँ।।

जब शब्दकोश के मोती चुन
तुम सुंदर हार बनाओगे
वह दोगे भला किसे, बोलो !
मुझको ही तो पहनाओगे।।

तुमसे मैं हूँ, मुझसे तुम हो
जब याद करो आ जाती हूँ,
तुम कवि, तुम्हारी कविता मैं,
शब्दों का रस बरसाती हूँ ।।
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1 टिप्पणी:

  1. कविता के मानवीकरण का उत्तम उदाहरण. कितने खूबसूरत शब्दों में कविता से कहलवाया है. अंतिम बंद पर तो बलिहारी हो जाने का मन करता है. ऐसी प्रसन्नचित करने वाली कविता साझा करने के लिए। शुक्रिया.
    अयंगर.

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