गुरुवार, 28 मार्च 2019

तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

ओ मांझी ! तेरे गीत बड़े प्यारे !
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!
लहरों के मीत,गीतों में प्रीत,
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

मांझी, तू नदिया का साथी,
तू जाने वो क्या कहती !
कब इठलाती, कब मुस्काती,
कब उसकी आँखें भरती ।
नदिया गाकर किसे बुलाए,
हमें भी बता रे !
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

धारा के कलकल स्वर में,
सुर मिल जाएगा तेरा,
गीत विरह के मत गाना
उस पार पिया का डेरा !
साँझ ढले से पहले मांझी,
पार पहुँचना रे !
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

बीच बीच में भँवर पड़े हैं,
जलधारा है गहरी !
अब पतवार थाम ले कसकर,
ओ प्राणों के प्रहरी !
धारा के संग धारा होकर,
कहाँ तू चला रे !
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!

लहरों के मीत,गीतों में प्रीत,
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!
तू गा रे ! साँझ सकारे !!!


रविवार, 24 मार्च 2019

दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए....

नेत्र भर आए और होंठ हँसते रहे,
प्रेम अभिनय से तुमको,कहाँ छ्ल सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?

प्रेम में कोई अश्रु गिरा आँख से,
और हथेली में उसको सहेजा गया।
उसको तोला गया मोतियों से मगर
मोल उसका अभी तक कहाँ हो सका ?
ना तो तुम दे सके, ना ही मैं ले सकी
प्रेम दुनिया की वस्तु, कहाँ बन सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?

गीत के सुर सजे, भाव नूपुर बजे,
किंतु मन में ना झंकार कोई उठी।
चेतना प्राण से, वेदना गान से,
प्रार्थना ध्यान से, कब अलग हो सकी ?
लाख पर्वत खड़े मार्ग को रोकने,
प्रेम सरिता का बहना कहाँ थम सका ?
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?

हो विदा की घड़ी में भी जिसका स्मरण
कब उसे काल भी, है अलग कर सका ?
था विरोधों का स्वर जब मुखर हो चला,
प्रेम सोने सा तपकर, निखरकर उठा।
चिर प्रतीक्षा में मीरा की भक्ति था वह,
प्रेम राधा का अभिमान कब बन सका ? 
दो नयन अपनी भाषा में जो कह गए
वो किसी छंद में कोई कब लिख सका ?

गुरुवार, 7 मार्च 2019

प्रार्थना

मेरे जीवन का पल-पल
प्रभु तेरा पूजन हो जाए,
श्वास-श्वास में मधुर नाम
भौंरे-सा गुंजन हो जाए।

जब भी नयन खुलें तो देखूँ
तेरी मोहिनी मूरत को,
मेरा मन हो अमराई
तू कोकिल-कूजन हो जाए।

जग में मिले भुजंग अनगिनत
उनके दंशो की क्या गिनती?
वह दुःख भी अच्छा है जिसमें
तेरा सिमरन हो जाए ।

हृदय धरा पर बरसो प्रभुवर
श्यामल मेघों-से रिमझिम,
कृपा दृष्टि की धारा बरसे
जीवन सावन हो जाए।

इतना छ्ल पाया पग-पग
दुनिया का प्रेम भयावह है,
अब तुमसे नाता ना टूटे
ऐसा बंधन हो जाए ।