मंगलवार, 29 नवंबर 2016

ना जाने क्यों...


ना जाने क्यों ?

ना जाने क्यों, खिंचा चला
आता है कोई....

ना है सूरत का पता,
और ना ही सीरत का,
कोई जान ना पहचान,
पर अहसान मानता है कोई ।

वक्त की उँगलियों ने
तार कौन से छेड़े ?
आज मन का मेरे
सितार बजाता है कोई ।

नहीं मिला जो ढूँढ़ने से
सारी दुनिया में,
आज अंतर से क्यूँ
पुकार लगाता है कोई ।

ताउम्र बहे अश्क,
पर समेट लिए अब,
उनकी कीमत जो
मोतियों से लगाता है कोई

कैसे कहूँ कि कौनसी ताकत
कहाँ - कहाँ पर है,
नजर न आए मुझे
फिर भी खींचता है कोई ।

ना जाने क्यों खिंचा चला
आता है कोई ।।
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