बुधवार, 28 मार्च 2018

जब मैं तुमसे मिलूँगी.....

जब मैं तुमसे मिलूँगी,
तुमसे कुछ दूर बैठी
टकटकी लगाकर
निहारूँगी तुम्हें.....
पहचानने की कोशिश करूँगी,
महसूस तो हर पल
किया है तुम्हें,
अब जानना चाहूँगी !

जब मैं तुमसे मिलूँगी,
मेरा मन तो मचलेगा
कि एक बार तुम्हें छूकर देखूँ
तुम वाकई हो भी या नहीं
लेकिन नहीं.... नहीं छुऊँगी,
कहीं तुम्हें छूने से मेरा
भ्रम ना टूट जाए !

जब मैं तुमसे मिलूँगी,
मेरी रूह से लिपट जाना
कोहरे की तरह
जानती हूँ, कोहरा कभी
हाथ में नहीं आता
पर जब छाता है तो
बिल्कुल सामने के दृश्य भी
नजर नहीं आते !

जब मैं तुमसे मिलूँगी
तब पूछूँगी तुमसे कि
कहाँ थे अब तक, क्यूँ थे,
कैसे रहे, अब कैसे आए.....
वगैरा वगैरा.....
देखो, तुम मेरे सवालों से
बेज़ार मत होना
और ना मेरे आँसुओं से,
जो माटी पर गिर रहे होंगे टप टप,
वही माटी तुम्हारे कदम भी
चूमेगी कभी....

जब मैं तुमसे मिलूँगी,
तब तुम तो मुझे पहचान लोगे ना ?

शनिवार, 24 मार्च 2018

तिश्नगी

तेरे अहसास में खोकर तुझे जब भी लिक्खा,
यूँ लगा,लहरों ने साहिल पे 'तिश्नगी' लिक्खा !

मेरी धड़कन ने सुनी,जब तेरी धड़कन की सदा,
तब मेरी टूटती साँसों ने 'ज़िंदगी' लिक्खा !

रात, आँखों के समंदर में घुल गया काजल
चाँद के चेहरे पे बादल ने 'तीरगी' लिक्खा !

इस मुहब्बत के हर इक दर्द का जिम्मा उसका,
जिसने पहले-पहल,ये लफ्ज 'आशिकी' लिक्खा !

हर तरफ तुझको ही ढूँढ़े है, निगाहें बेताब
एक बुत के लिए, अश्कों ने 'बंदगी' लिक्खा !
                                         - मीना शर्मा -

तिश्नगी /तश्नगी - प्यास
तीरगी - अंधेरा
बुत - मूर्ति
बंदगी - इबादत 

शुक्रवार, 16 मार्च 2018

रिश्तों का सच

कोशिश करती हूँ
सबको खुश रख सकूँ
कम से कम उनको तो
जो अपने लगते हैं !!!
विडंबना है यह....कि
तमाम कोशिशों के बाद भी
कोई ना कोई, कभी ना कभी
रूठ ही जाता है !!!
कोशिश करती हूँ
पिरोकर रख सकूँ
सारे मोतियों को एक माला में !
तमाम कोशिशों के बाद भी
एक ना एक मोती,
टूट या छूट ही जाता है !!!
रहीम जी कह गए -
रूठे सुजन मनाइए और
टूटे मुक्ताहार पिरोते रहिए....
रहीमजी, क्या आपकी ये सीख
इस जमाने में भी लागू होती है ?
जहाँ मशीनें मोतियों पर
हावी हो गई हैं 
और रिश्ते,नफे-नुकसान के
तराजू पर तौले जाते हैं !
जहाँ प्यार दिखावा है
और संबंध नाटक !
उस धागे का क्या हश्र
जो उन मोतियों को
पिरोने की कोशिश में
आखिरी साँसें गिन रहा है !!!

बुधवार, 14 मार्च 2018

बाँसुरी

बाँसुरी - 1-
बाँस का इक नन्हा सा टुकड़ा,
पोर - पोर में थीं गाँठें !
जीवित था पर प्राण कहाँ थे ?
चलती थीं केवल साँसें !!!

मन का मौजी, सुर का खोजी
कहीं से इक यायावर आया !
काटा, छीला, किया खोखला,
पोर - पोर संगीत सजाया !!!

पीड़ा से सुर की उत्पत्ति,
हृदय भेद कर निकला राग !
बहने लगा मधुर रस बनकर,
यायावर का वह अनुराग !!!!

ओठों से तब, लगा के अपने,
उसने छेड़ा प्रीत का गीत !
बाँस का टुकड़ा, बना बाँसुरी,
यायावर, प्राणों का मीत !!!!
.................................................
 बाँसुरी - 2 -
यह कौन प्राण फूँकता निष्प्राण देह में,
अपने ही प्रश्न से हुई हैरान बाँसुरी ।।

अपने छुपे गुणों से थी अनजान बाँसुरी,
अब गा उठी, थिरक उठी बेजान बाँसुरी ।।

अधरों के स्पर्श से सिहर, निखर-निखर उठी,
बन गई माधुर्य की, पहचान बाँसुरी ।।

मन में कसक उठा गई, जब-जब बजी वेणु,
मीठा-सा दर्द दे गई, नादान बाँसुरी ।।

सपनों में सुना जाती है, रस से भरी बतियाँ
सूने हृदय की, बन गई मेहमान बाँसुरी ।।

शनिवार, 10 मार्च 2018

चलो ना !!!

इस जनम की तरह
हर जनम में, 
अनगिनत जन्मों की,          
अनंत यात्रा के पथ पर 
तुम साथ चलो ना !

चलो लगा लें फिर फेरे,
अग्निकुंड के नहीं,     
अखिल ब्रह्मांड के !
साक्षी होंगे इस बार
वह धधकता सूर्य,
ग्रह, चाँद, तारे !

इक दूजे को आज नए               
वचनों में बाँध चलो ना!
पथ पर साथ चलो ना !

ना तुम अनुगामी
ना मैं अवलंबित,
एक राह के हम पथिक ! 
तो इक दूजे का लेकर
हाथों में हाथ, चलो ना !
पथ पर साथ चलो ना !

देह के दायरों से परे
मन से मन का मिलन,
नई रीत का प्रतीक !
मैं लिखूँ , तुम रचो
तुम लिखो, मैं रचूँ
नए काव्य - नए गीत !

साथी, सहयात्री बनकर, 
दिन औ' रात, चलो ना !
पथ पर साथ चलो ना !!!

बुधवार, 7 मार्च 2018

औरत


समय की धारा से,लड़कर

पार होना आ गया,
अपनी नौका की स्वयं
पतवार औरत !!!

काव्य में वह करूणरस,

है राग में वह भैरवी,
साज़ में मुरली मधुर
सितार औरत !!!

रेशमी धागों सी नाजुक

पुष्प सी कोमल सही,
गर उठी कुदृष्टि तो,
अंगार औरत !!!

चूड़ियों वाली कलाई

इतनी भी कमसिन नहीं,
वक्त आए, थाम ले
तलवार औरत !!!

द्रौपदी, सीता, अहिल्या

जब बनी, तब क्या मिला ?
आज दुर्गा, शक्ति का
अवतार औरत !!!

तिलमिलाता क्यों, ना जाने

शक्ति का पूजक समाज,
माँगती है अपने जब,
अधिकार औरत !!!

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

तुम्हारी याद में....

धरा के अंक में समाता
सिंदूरी सूरज,
नीड़ों को लौटती,
सफेद फूलमालाओं सी
शुभ्र बगुलों की पंक्तियाँ !

पीपल के पात-पात से
गूँजता पक्षियों का कलरव,
पेड़ों की डालियों को
हौले-हौले झकझोरकर
ना जाने कौन से राज पूछती
शरारती हवा !

दूर कहीं गूँजती - सी
मृदंग की मधुर थाप,
और तुम्हारे इंतजार में
भटकता उदास मन !
शाम और उदासी
अब पर्याय हो गए हैं
एक दूजे के !

यादों की बदलियाँ
घिर आती हैं !
मैं पलकें बंद कर लेती हूँ
शाम अब भीग रही है !!!

गुरुवार, 1 मार्च 2018

शबरी

चुन-चुनकर फल लाए शबरी
पुष्प के हार बनाए शबरी
निशिदिन ध्यान लगाए शबरी
फिर भी रहे उदास !
राम रमैया कब आओगे,
छूट ना जाए साँस !!!

शीतल जल गगरी भर लाऊँ
कुटिया को फूलों से सजाऊँ
प्रभु पंथ पर नयन बिछाऊँ
कंद मूल नैवेद्य बनाऊँ,
कैसे स्वागत करूँ प्रभु का
मैं चरणों की दास !!!
राम रमैया कब आओगे,
छूट ना जाए साँस !!!

भक्त की पीर प्रभु पहचाने
मेरे दुःख से क्यूँ अंजाने ?
एक एक दिन युग सम लागे
कैसे राम मिलेंगे जाने !
किंतु मिलेंगे इसी जन्म में
इतना है विश्वास !!!
राम रमैया कब आओगे,
छूट ना जाए साँस !!!

खिंचे चले आए जब रघुवर
शबरी की भक्ति से बँधकर
मीठे बेर खिलाए चखकर
हरि खाते हैं हँस-हँसकर !
भर-भर आई अँखियाँ, मिट गई
जन्म-जन्म की प्यास !!!
    ----मीना शर्मा----