सोमवार, 1 अप्रैल 2024

फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !

फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !

नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !


तुम लहू के रंग को पहचान लो,

तुम हवाओं की दिशा को जान लो,

कर ना पाए अब तुम्हें गुमराह कोई,

ना बदल पाए तुम्हारी चाह कोई ,

इक अनोखी रीत लिख दो साथियो !

नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !


जात भी है, धर्म भी है, पंथ भी !

हर तरह के देश में हैं ग्रंथ भी,

क्यूँ मगर इनके लिए लड़ते हैं हम,

बात पर अपनी ही क्यूँ अड़ते हैं हम ?

तुम लिखो एक प्रेम की पुस्तक नई,

इंसान की तुम जीत लिख दो साथियो !

नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !


फिर सुबह के गीत लिख दो साथियो !

नफरतों में प्रीत लिख दो साथियो !





शुक्रवार, 29 मार्च 2024

बाबासाहब आंबेडकर

कितने बाबा यहाँ हो गए,
बाबासाहेब जैसा कौन ?
जो जल को चवदार बना दे
जादूगर था ऐसा कौन ?

ना पैसा, ना दौलत - शोहरत
ना कोई रखवाला था,
अपने दम पर गगन झुकाने
वाला वो मतवाला था।
शोषण और दमन से लड़ने
का उसने आहवान किया,
सदियों से अन्याय सह रहे
लोगों को नेतृत्व दिया।
पद की खातिर सब मिटते हैं,
जन की खातिर मिटता कौन ?
जो जल को चवदार बना दे
जादूगर था ऐसा कौन ?

संविधान का रूप सुनहरा
जिसके हाथों ने लिक्खा
ज्ञान औषधि, ज्ञान दुआ और
ज्ञान ही थी उसकी पूजा
बिगुल ज्ञान का बजा बजाकर
सोए लोग जगाता था
मरी हुई आत्माओं को वह
जिंदा यहाँ बनाता था।
जो पढ़ लेगा वही बचेगा 
ऐसा हमसे कहता कौन !
जो जल को चवदार बना दे
जादूगर था ऐसा कौन ?

बत्तीस डिग्री, नौ भाषाएँ
ये थे उसके आभूषण,
और हजारों ग्रंथों का
संग्रह ही था बस उसका धन !
भेदभाव और छुआछूत से
तड़प रहा था उसका मन,
ईश्वर ने तो एक बनाया
फिर क्यों अपमानित कुछ जन !
समता के सिद्धांतो को
दुनिया के आगे रखता कौन ?
जो जल को चवदार बना दे
जादूगर था ऐसा कौन ?

संदर्भ : (विकिपीडिया)
महाड़ का सत्याग्रह (अन्य नाम: चवदार तालाब सत्याग्रह व महाड का मुक्तिसंग्रामभीमराव आंबेडकर की अगुवाई में 20 मार्च 1927 को महाराष्ट्र राज्य के रायगढ़ जिले के महाड स्थान पर दलितों को सार्वजनिक चवदार तालाब से पानी पीने और इस्तेमाल करने का अधिकार दिलाने के लिए किया गया एक प्रभावी सत्याग्रह था। इस दिन को भारत में सामाजिक सशक्तिकरण दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस सत्याग्रह में हजारों की संख्या में दलित लोग सम्मिलित हुए थे, सभी लोग महाड के चवदार तालाब पहुँचे और आंबेडकर ने प्रथम अपने दोनों हाथों से उस तालाब पानी पिया, फिर हजारों सत्याग्रहियों ने उनका अनुकरण किया। यह आंबेडकर का पहला सत्याग्रह था।

वैसे 'चवदार ' मराठी शब्द है जिसका अर्थ हिंदी में 'स्वादिष्ट' होता है।



बुधवार, 14 फ़रवरी 2024

प्रेम

 प्रेम....
जब नया नया होता है, 
तब लगता है कि प्रेम है -
गुनगुनाना, लजाना, 
सिहरना, सिमटना
समझने की कोशिश,
कि हो क्या रहा है ?

फिर कुछ समय बाद लगता है -
प्रेम ये नहीं, प्रेम तो है -
रूठना - मनाना, 
झगड़ना - सताना, 
अधिकार जताना, जबरन बुलाना !

वक्त के साथ
फिर रूप बदलता है प्रेम का !
और लगने लगता है कि प्रेम है -
नयनों का सावन,
प्रतीक्षा की घड़ियाँ !
खोने का डर !
छिन जाने की आशंका !

समय के साथ साथ
प्रेम भी प्रौढ होता है
और नए अवतार में प्रकटता है !

अहसास होता है कि प्रेम है -
एक दूजे के हित की चिंता,
बिछोह के गम के साथ
जितना भी संग मिला, उसमें संतोष !
छोड़ देना हक की बातें !
'बस तुम खुश रहो' की कामना !

उम्र के एक मुकाम पर
पहुँचने के बाद,
बस यही लगता है कि प्रेम है  -
प्रार्थना, दुआ, सलामती की कामना
दो हृदयों का एक हो जाना,
और उनकी भावनाओं का भी।

ईश्वर तुम्हें हमेशा खुश रखे,
मौन दुआओं का असर 
सबसे अधिक होता है !!!




रविवार, 7 जनवरी 2024

मत पूछो !

किसने कितना साथ निभाया
मत पूछो !
कौन है अपना, कौन पराया
मत पूछो !

सबक दे गया मुझको
हर मिलने वाला,
किसने कौन सा पाठ पढ़ाया
मत पूछो !

जिसका जीवन जलता
जग की भट्टी में,
कैसे उसको जीना आया
मत पूछो !

चादर की लंबाई नाप 
ना पाया जो,
उसने कितना पग फैलाया,
मत पूछो !

सबको मालूम, दुनिया एक
सराय है !
देगा कितना, कौन किराया
मत पूछो !

फटते बादल, दरके पर्वत,
झुलसे जंगल !
क्यूँ कुदरत को गुस्सा आया
मत पूछो !


शुक्रवार, 5 जनवरी 2024

जाड़े का एक दिन

अभी अभी तो जगा नींद से
अभी अभी फिर सो गया दिन !

कितना छोटा हो गया दिन !

जाड़े का ये कैसा जादू
सूरज पर है इसका काबू
शाल - दुशाले, दुलई - कंबल
ओढ़ के मोटा हो गया दिन !

कितना छोटा हो गया दिन !

रात ठिठुरती काँप रही है
गुदड़ी से तन ढाँप रही है
दिन होगा तो धूप खिलेगी
एक भरोसा हो गया दिन !

कितना छोटा हो गया दिन !

सूखे - सूखे आज नहा लो
पानी में तुम हाथ ना डालो
अदरक वाली गर्म चाय के
संग समोसा हो गया दिन !

कितना छोटा हो गया दिन !

सूरज भाई, कहाँ चला रे
काम पड़े हैं कितने सारे !
दुपहरिया के ढलते ढलते
किस कोने में खो गया दिन !

कितना छोटा हो गया दिन !