शुक्रवार, 13 दिसंबर 2019

टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं !

फिर कुछ बातें याद आती हैं
फिर कुछ लम्हे तड़पाते हैं !
कोई खुदा-सा हो जाता है
और हम सजदा कर जाते हैं।

रिश्तों के गहरे दरिया में
बहते हैं टूटी कश्ती से !
लहरों के संग बहते-बहते
टुकड़े-टुकड़े हो जाते हैं ।

सर्द है रुत, है सर्द हवा
और सर्द सुलूक तुम्हारा है !
बर्फ से ठंडे अल्फाजों से,
अपने दिल को बहलाते हैं।

एक जुनूनी बादल की,
जिद पर मौसम फिर भीगेगा !
फिर गीले होंगे खत मेरे
पंछी जिनको ले जाते हैं।

छोड़ भी देते दुनिया, पर
इस दुनिया में ही तुम भी हो !
ऐसा ही इक गीत था जो
तुमने गाया, अब हम गाते हैं।








बुधवार, 4 दिसंबर 2019

अपने-अपने दर्द

अपने-अपने दर्द सभी को खुद ही सहने पड़ते हैं
दर्द छुपाने, मनगढ़ंत कुछ किस्से कहने पड़ते हैं।
किसको फुर्सत, कौन यहाँ तेरे गम का साझी होगा ?
पार वही उतरेगा जो खुद ही अपना माझी होगा।
उलझे रिश्तों के धागे पल-पल सुलझाने पड़ते हैं
बुझे चेतना के अंगारे फिर सुलगाने पड़ते हैं ।।

शाम ढले सागर में नैया किसे खोजने जाती है,
बियावान में दर्दभरी धुन किसके गीत सुनाती है ?
अट्टहास करता है कोई दीवाना मयखाने में,
मध्य निशा में गा उठता है, इक पागल वीराने में,
बंदी अहसासों के सपने कौन चुरा ले जाता है ?
शब्दों के शिल्पी चोरी से किसकी मूरत गढ़ते हैं ?

जिन आँखों को मस्ती के सागर छलकाते देखा हो,
जिन ओठों को बस तुमने हँसते गाते ही देखा हो,
एक बार उन ओठों के कंपन में छुपा रूदन देखो
और कभी उन आँखों में मेघों से भरा गगन देखो।
खामोशी के परदे में जब जख्म छुपाने पड़ते हैं 
तब ही मन बहलाने को, ये गीत बनाने पड़ते हैं।।