बुधवार, 30 अगस्त 2017

शिकायत

आज दिल ने मेरे मुझसे ये शिकायत की है
ये कहो, तुमने कभी मुझसे मुहब्बत की है ?

मैंने ख्वाबों को तेरे, अपनी निगाहें दे दीं
तेरे जज्बातों को धड़कन में पनाहें दे दीं !
फिर भी तुमने सदा गैरों की हिमायत की है
आज दिल ने मेरे मुझसे ये शिकायत की है !

जख्म होंगे तेरे, लेकिन दर्द तो मुझको मिला
आँसू तेरे गिरे, दामन हुआ मेरा गीला !
अपनी खुशियों की तेरे नाम वसीयत की है
आज दिल ने मेरे मुझसे ये शिकायत की है !

ये जमाना कभी तेरा ना हुआ, ना होगा
मुझसे बढ़कर कोई, तेरा नहीं अपना होगा !
तेरे हर राज़ में मैंने ही तो शिरकत की है
आज दिल ने मेरे मुझसे ये शिकायत की है !

भटकता फिरता हूँ तन्हा, यूँ दीवाना हूँ तेरा
तेरे वजूद का हिस्सा हूँ, फसाना हूँ तेरा !
तेरे ओठों पे तबस्सुम की ही, हसरत की है
आज दिल ने मेरे मुझसे ये शिकायत की है !










सोमवार, 28 अगस्त 2017

लौट आओ !

सूरज ढलने लगा,
रात ने स्याह ओढ़नी से
आसमां को ढ़क दिया
तब तुम आए !
मेरे हाथों में थमा दी
एक भारी भरकम पोटली,
पोटली में सितारे भरे थे !!!

पर मैंने तो जुगनू माँगे थे !
सितारों को सँभालना
मेरे बस की बात नहीं थी,
जुगनुओं को पकड़ पाना
तुम्हारे बस का नहीं था !!!

सितारों की रोशनी
मेरी आँखें ना सह सकीं !
जुगनुओं को ढूँढने का
जंगलीपन तुम्हे ना भाया !
कशमकश में फिसली
मेरे हाथों से,
रात भी, पोटली भी !!!

खुल गई भरम की गाँठ,
रात चुन गई, बिखरे सितारे !
जुगनू भी कहीं खो गए,
तुम भी लौट गए !
और मैं खोजती रह गई
तुम्हें भी, जुगनुओं को भी !!!

आसमां की आँखें लाल हैं
रोया होगा शायद,
या जागा होगा रात भर !
मेरे हाथों ने कँटीले पौधों से
जुगनू चुन लिए हैं,
लहूलुहान हो गए तो क्या ?

अब लौट आओ,
देखो ना !
मेरे लहूलुहान हाथों पर
मेंहदी का रंग है,
और मेहनत का भी !!!
लौट आओ !!!





गुरुवार, 24 अगस्त 2017

कबूल है हार !

उफ ! ये अभिमान !
प्रेम के दाता होने का
सर्वज्ञ ज्ञाता होने का !

गैरों को खुशियों की
भीख बाँटने का !
उड़ते पंछी के पर
काटने का !!!

फटेहाल सुदामा जाने
स्नेह की ही रीत !
बावरी मीरा तो गाए
प्रेम के ही गीत !!!

मन तेरा ना स्वीकारे
गर्व से भरा !!!
अश्रूबिंदु ना कभी
आँख से गिरा !!!

प्यार के खजाने का
मालिक हुआ,
अपने ही स्वत्व में
गाफिल हुआ !!!

भूल गया नेह के
सागर की गहराई !
भावनाओं की तुच्छ भेंट
ठोकर से ठुकराई !!!

अंत समय कौन क्या
साथ ले जाएगा ?
वक्त हम सभी को
यही सिखाएगा !!!

जीवन में प्रेम से
बड़ा नहीं उपहार !
प्रेम में कबूल है
मुझे अपनी हार !!!

शनिवार, 19 अगस्त 2017

कैसे करूँ नव सृजन ?

आर्द्र नयन, शुष्क मन !
कैसे करूँ मैं नव सृजन ?

पूर्णता में रिक्तता,
अलिप्तता में लिप्तता,
विस्मृति में है स्मृति
जागृति में है शयन !
            कैसे करूँ मैं नव सृजन ?

जय में पराजय लगे,
राग में विराग है
है मूक मौन वक्तृता
हास्य में छुपा रुदन !
           कैसे करूँ मैं नव सृजन ?

विकास में विनाश है,
तृप्ति में भी प्यास है
वह मार्ग कौन सा कहाँ?
जिसका करूँ मैं अनुगमन !
           कैसे करूँ मैं नव सृजन ?

बुधवार, 9 अगस्त 2017

उम्मीद

अंधकार दूर हो,
उम्मीद हो उजास की !
विकास की घड़ी में बात
मत करो विनाश की।।

भिन्न-भिन्न, दूर-दूर,
हम रहे कई सदी,
दुश्मनों को देश की,
बागडोर सौंप दी ।

अब मिटा दो दूरियाँ,
जोड़ दो कड़ी-कड़ी
ना रहे कोई प्रथा,
भेदभाव से जुड़ी ।

अब नई हवा बहे,
एक प्राण-श्वास की !
विकास की घड़ी में बात,
मत करो विनाश की।।

हर किसान, हर जवान
की व्यथा का अंत हो
भूख की, अभाव की,
करूण कथा का अंत हो।

वक्त से पहले मिटें ना,
बचपने की मस्तियाँ
क्रूर पंजों में फँसें ना,
बुलबुलें औ' तितलियाँ ।

जुगनुओं से भी मिले,
इक किरण प्रकाश की !
विकास की घड़ी में बात
मत करो विनाश की ।।

शनिवार, 5 अगस्त 2017

कैसे ?


जाने बदला क्यूँ रुख हवाओं का,
मिजाज़ रुत का भी है बदला सा !
प्यार का फलसफा सदियों से वही
वक्त के साथ हम बदलें कैसे ?

आज बच्चे सी मचलकर आती
ज़िद्दी यादों को थाम ले कोई !
द्वार पर दे रहीं दस्तक मन के,
लौट जाने को भी कहें कैसे ?

एक पंछी को रोज देखा है,
बातें करते हुए दरख्त के संग !
नाम दोनों के पाक रिश्ते का,
कोई पूछे तो बताएँ कैसे ?

हमने बादल से गुज़ारिश की है,
बरस जाए वो, जमीं पर दिल की!
कोई कदमों के निशां छोड़ गया,
अपने अश्कों से मिटाएँ कैसे ?

गर वो कह दें, कि अब चले जाओ
लौट जाएँगे उनकी महफिल से !
जान देकर वफ़ा निभा देंगे,
अब कहो, और निभाएँ कैसे ?

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