रविवार, 27 नवंबर 2016

साँझ - बेला


साँझ - बेला

विदा ले रहा दिनकर
पंछी सब लौटे घर,
तरूवर पर अब उनका
मेेला है !

दीप जले हैं घर - घर
तुलसी चौरे, मंदिर,
अंजुरि भर सुख का ये
खेला है !

रात की रानी खिली
कौन आया इस गली,
संध्या की कातर-सी
बेला है !

मिल रहे प्रकाश औ' तम
किंतु दूर क्योंकर हम,
भटकता है मन कहीं
अकेला है !

विरह - प्रणय का संगम
नयन हुए फिर से नम,
फिर वही बिछोह का दुःख
झेला है !

1 टिप्पणी:

  1. भाषा पर पकड़ का बोधन. साँध्य बेला के मिलन व बिछोह का अच्छा वर्णन.

    अयंगर.

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