शुक्रवार, 25 मार्च 2022

याद कहाँ रहता है हम दीवानों को !

काम नहीं आती है अक्ल मुहब्बत में,
याद कहाँ रहता है हम दीवानों को !

मौत खींचकर पास बुला ही लेती है,
जाना, जब जलते देखा परवानों को !

एक समय जो मंदिर - मस्जिद जाती थी,
राह वही जाती है अब मयखानों को !

सोच समझकर लफ्जों को फेंका करिए,
तीर नहीं आते फिर लौट कमानों को !

गुलशन के आजू - बाजू आबादी है,
कौन बसाया करता है वीरानों को  !

वक्त पड़े तो ले लेना हमसे हिसाब,
लिखकर रखना तुम अपने एहसानों को !

छोड़ गए जिनको मयकश भी, साकी भी,
वक्त भरेगा उन खाली पैमानों को !

दर्द, कराहों, आहों की आदत ऐसी,
जख्म भरे तो खुरचा गया निशानों को !


शनिवार, 12 मार्च 2022

यह भी प्रेम

तुम्हारी गर्वोक्तियाँ,

मेरी सहनशक्ति !

तुम्हारी जिद,

मेरी हार !

तुम्हारी चिडचिडाहट,

मेरी झूठी हँसी !

तुम्हारी तकलीफें,

मुझे पीड़ा !

तुम्हारा दिखावा,

मेरा अनजान बने रहना !

तुम्हारा छल,

मेरा समर्पण !

   ये सब मिलकर जो कुछ भी बनता है,

   मैं उसे भी प्रेम ही कहती हूँ।

रविवार, 6 मार्च 2022

अश्वत्थामा

युद्ध पहले भी होते आए हैं

आगे भी होते रहेंगे,

फर्क इतना है कि

पहले होते थे युद्ध देवों और दानवों में

अथवा मानवों और दानवों में।

मानव - मानव में पहला युद्ध

शायद महाभारत ही रहा हो,

उस युद्ध के सारे निशान

मिट भी गए हों समय के साथ,

परंतु .....

एक अश्वत्थामा अपने माथे पर जख्म लिए 

भटक रहा है युगों से ।

बदले की आग में उसका

विवेक भी जलकर राख हो गया था।

युद्ध में जो उसे ठीक लगा,

उसने किया था, बिना सोचे विचारे ! 

और आज होनेवाले युद्ध, 

जो मानव मानव में हो रहे, 

उनका परिणाम  क्या होगा ?

फिर एक बार

कोई अश्वत्थामा पाप लेगा अपने सिर,

होकर दुर्बुद्धि का शिकार

ना जाने कौन अश्वत्थामा

चला दे परमाणु हथियार निर्दोषों पर ।

युद्ध समाप्ति के बाद

ना जाने कितने ही अश्वत्थामा

अपने तन, मन और आत्मा पर जख्म लिए

भटकेंगे सारी धरा पर युगों तक !