शुक्रवार, 2 दिसंबर 2016

अब ना रुकूँगी !


अब ना रुकूँगी !

अब ना रुकूँगी !
बहुत रुक चुकी,
इस इंतजार में,
कि लौटोगे तुम तो साथ चलेंगे ।

डोर से कटी पतंग सी
कट चुकी, फट चुकी ये जिंदगी !
भागते-भागते उस
कटी पतंग के पीछे,
गुजरे दिन, महीने, साल !

चलो कोई नहीं,
अब तो लूट ही लिया उसे
आ गई है डोर हाथों में,
फटी ही सही, हाथ तो आ गई
पतंग जिंदगी की !

जोड़ भी लूँगी
विश्वास का गोंद मिल गया है,
हिम्मत की तीलियाँ भी हैं,
जोड़ ही लूँगी !

अब ना रुकूँगी,
बहूँगी नदिया - सी ।
मिलना हो तो पहुँचो, 
सागर किनारे !
अब वहीं मिलूँगी,
अब ना रुकूँगी !
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