सोमवार, 2 जनवरी 2017

हिमालय आना तेरे पास

हिमालय आना तेरे पास

आना तेरे पास,
हिमालय,
आना तेरे पास !

पाया था केवल एक बार
तेरा दर्शन,
वह प्यास अभी तक बाकी है,
खिंचता है मन !

हिममंडित शिखरों की पुकार 
सुन, स्वप्न ले रहा है आकार !
उस देवभूमि में फिर आऊँँ,
धुल जाएँ सब मन के विकार !
आऊँगी, है पूरा विश्वास,
हिमालय, आना तेरे पास !

ओ नगाधीश,
शुभ्र - श्वेत परिधान किए
ऋषि सा पावन,
तू लिए गोद में
हरियाले वन, कई सघन !

मन करता मेरा, खो जाऊँ
चिड़िया, उस वन की हो जाऊँ,
या बन जाऊँ, कोई मछली
तेरी नदियों में रह पाऊँ,
छूटे जब तन से साँस !
हिमालय, आना तेरे पास !

तू चिर - तापस
है अडिग - अचल !
मेरा मन अस्थिर अज्ञानी
कुछ - कुछ चंचल !
तू शीतल स्नेह बहाए है
आवाहन करे, बुलाए है,

पर मैं ना जानूँ लक्ष्य कहाँ
शापित आत्मा सी दूर यहाँ,
मैं काट रही अज्ञातवास !
कैसे आऊँ पास ?
हिमालय, 
कैसे आऊँ पास !!!

आना तेरे पास,
हिमालय,
आना तेरे पास,

4 टिप्‍पणियां:

  1. हिममंडित शिखरों की पुकार
    सुन, स्वप्न ले रहा है आकार !
    उस देवभूमि में फिर आऊँँ,
    धुल जाएँ सब मन के विकार !
    आऊँगी, है पूरा विश्वास,
    हिमालय, आना तेरे पास/
    बहुत खूब प्रिय मीना |
    हिमालय सदियों से आध्यात्मिकता का प्रमुख गंतव्य रहा है |ऋषि मुनियों ने भी हिमालय की गोद में जाकर मोक्ष की कामना की और वेड रिचाओं के स्वर भी इसीकी वादियों में गुँजित हुए |हिमालय की महिमा बढाती रचना अपने आप में अद्भुत और आध्यात्म के आकांक्षी ह्रदय का विकल गान है | ऐसी रचनाएँ कभी कभी ही रची जाती हैं | सस्नेह |

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  2. हिमालय का सुंदर वर्णन । और मन की शांति के लिए एक बेचैनी झलक रही हिमालय के पास जाने की ।
    सुंदर सृजन

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  3. मनोहर,मनभावन आति पावन मन को शुभता प्रदान करती रचना दी।
    मन करता मेरा, खो जाऊँ
    चिड़िया, उस वन की हो जाऊँ,
    या बन जाऊँ, कोई मछली
    तेरी नदियों में रह पाऊँ,
    छूटे जब तन से साँस !
    हिमालय, आना तेरे पास !

    कितनी गहन पंक्तियाँ हैं👌

    प्रणाम दी।
    सादर।

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  4. तू चिर - तापस
    है अडिग - अचल !
    मेरा मन अस्थिर अज्ञानी
    कुछ - कुछ चंचल !
    तू शीतल स्नेह बहाए है
    आवाहन करे, बुलाए है,
    जब मन एकांत चाहता है तब चिर तापस हिमालय ज्यों बुलाता है और वहाँ तक का मानसिक सफर शुरू हो जाता है...।
    अत्यंत गहन भावों से रची बहुत ही लाजवाब कृति।
    वाह!!!

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