शनिवार, 21 जनवरी 2017

ये जिंदगी


ये जिंदगी

अनगिनत मोड़ों से गुजरती,
फिर वही,
भागती दौड़ती जिंदगी...

ऊँचे - ऊँचे इरादों के पहाड़ पार करती,

कभी कठिनाइयों की खाई में उतरती,
कभी थक कर बस एक पल को ठहरती,
फिर अनगिनत मोड़ों से गुजरती,
भागती दौड़ती ये जिंदगी.

मासूम रिश्तों की छाँव में सुस्ताती,
यादों की सुनसान घाटियों में भटकाती,
टेढ़े - मेढ़े रास्तों पर गिरती सँभलती,
फिर अनगिनत मोड़ों से गुजरती,
भागती दौड़ती ये जिंदगी

स्वार्थ के काँटों की चुभन से सिहरती,

प्यार के फूलों की महक से महकती,
खुशियों की बगिया में चिड़ियों सी चहकती,
फिर अनगिनत मोड़ों से गुजरती,
भागती दौड़ती ये जिंदगी.
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