बुधवार, 4 जनवरी 2017

तनो मत, झुको !

अरे , ओए...
सीना ताने क्यों खड़ा है?
अपने आप में घमंड है क्या?
पैर तो जमीन पर हैं ना?
पैर उठाकर कहाँ रह-जी पाओगे ?

माना, तुम गगनचुंबी हो,
गगन से नीचे बात नहीं करते,
कभी सोचा है कि
गगन के अलावा कोई
तुमसे बात भी तो नहीं करता ।

कभी झुककर आओ
जमीन पर, फिर देखो,
कितने मिलेंगे चाहने वाले
इतना प्यार देंगे कि
बात करने से फुर्सत
भी नहीं मिलेगी.
सीना तानने पर उनकी
कमी महसूस करोगे
फिर तुम गगनचुंबी कहलाना
नहीं चाहोगे ।

सहायक भी बनोगे,
सहायक भी बनेंगे,
सहायता मिल भी जाएगी,
सहायता कर भी पाओगे।

झुकने से कद छोटा नहीं होता,
मात्र कम लगने लगता है,
सामाजिक कद तो बढ़ता ही है,
कद्र भी बढ़ती है।

देखा है मैंने,
तुम्हारे भरते - छलकते
नयनों को हमेशा,
क्यों बहाते हो इतने आँसू ?
धरती पर देखो,
कितने अनगिनत
खूबसूरत फूल खिले हैं
तुम भी उन संग खिलो- खेलो।।

इसलिए मेरी सुनो,
तनना छोड़ो
झुकना सीखो,
और अपना सामाजिक
कद और कद्र बढ़ाओ.

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