शनिवार, 14 जनवरी 2017

दास्ताँ लिख लूँ....

फिर चले आओ अजनबी बनकर,
फिर तुम्हें अपना रहनुमा लिख लूँ ।

तुम जो नजरों की जुबाँ में पढ़ लो,

मैं तुम्हें पहला खत अपना लिख लूँ ।

तुम लिखो दिल में, मेरी यादों को,

और मैं तुमको भूलना लिख लूँ ।

थोड़े नादान हैं अल्फाज मेरे,

तुम कहो तो, मैं बचपना लिख लूँ ।

जिद करो तुम  मुझे मनाने की,

आज मैं तुमसे रूठना लिख लूँ ।

जो उमड़ आई है पलकों के तले,

उस घटा का मै बरसना लिख लूँ ।

वक्त उड़ता है पंछियों की तरह,

चंद लम्हों में भला क्या लिख लूँ ।

चले जाना, ज़रा ठहर जाओ,

जो है बाकी वो, दास्ताँ लिख लूँ ।

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