फिर चले आओ अजनबी बनकर,
फिर तुम्हें अपना रहनुमा लिख लूँ ।
तुम जो नजरों की जुबाँ में पढ़ लो,
मैं तुम्हें पहला खत अपना लिख लूँ ।
तुम लिखो दिल में, मेरी यादों को,
और मैं तुमको भूलना लिख लूँ ।
थोड़े नादान हैं अल्फाज मेरे,
तुम कहो तो, मैं बचपना लिख लूँ ।
जिद करो तुम मुझे मनाने की,
आज मैं तुमसे रूठना लिख लूँ ।
जो उमड़ आई है पलकों के तले,
उस घटा का मै बरसना लिख लूँ ।
वक्त उड़ता है पंछियों की तरह,
चंद लम्हों में भला क्या लिख लूँ ।
चले जाना, ज़रा ठहर जाओ,
जो है बाकी वो, दास्ताँ लिख लूँ ।
फिर तुम्हें अपना रहनुमा लिख लूँ ।
तुम जो नजरों की जुबाँ में पढ़ लो,
मैं तुम्हें पहला खत अपना लिख लूँ ।
तुम लिखो दिल में, मेरी यादों को,
और मैं तुमको भूलना लिख लूँ ।
थोड़े नादान हैं अल्फाज मेरे,
तुम कहो तो, मैं बचपना लिख लूँ ।
जिद करो तुम मुझे मनाने की,
आज मैं तुमसे रूठना लिख लूँ ।
जो उमड़ आई है पलकों के तले,
उस घटा का मै बरसना लिख लूँ ।
वक्त उड़ता है पंछियों की तरह,
चंद लम्हों में भला क्या लिख लूँ ।
चले जाना, ज़रा ठहर जाओ,
जो है बाकी वो, दास्ताँ लिख लूँ ।
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