मैं और घड़ी
घड़ी के काँटे
जीवन के पल - क्षण
सबमें बाँटें !
घड़ी की टिक - टिक
कहती है ना रुक
थकना मना !
इसके इशारों पर
चलती हूँ यंत्रवत
स्वयंचालित !
अब तो बने ज्यों
इक - दूजे की खातिर
मैं और घड़ी !
सुइयों से अपनी
बाँधकर लेती है
अनगिन फेरे !
वक्त की चेतावनी
ऋतु है मनभावनी
जाएगी बीत !
उनका है साथ जब
घड़ी - घड़ी फिर क्यूँ
घड़ी देखे !
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