शुक्रवार, 9 दिसंबर 2016

नींव इमारत की

आपने पौधे लगाए, और
फल हम खा रहे,
थामकर उँगली चलाया,
हम तभी तो चल रहे।।

उम्र भर औरों के ही,
वास्ते सब कुछ किया,
तन दिया, मन भी दिया
सारा जीवन दे दिया।
ना किए कुछ शौक पूरे,
गम भी सारे सह लिए.....
थामकर उँगली चलाया,
हम तभी तो चल रहे।।

आप हैं वह नींव जिस पर
यह इमारत है खड़ी,
अपने बच्चों की भलाई
आप सोचें हर घड़ी,
दर्द हो बच्चों को तो भी
आपके आँसू बहे....
थामकर उँगली चलाया,
हम तभी तो चल रहे।।

आप हैं वटवृक्ष जिसकी,
छाँव ही आशीष है।
आप हैं ममता की लोरी,
ज्ञान वाली सीख हैं।
सीखते हैं आपसे हम,
चाहे जितना पढ़ रहे।।
थामकर उँगली चलाया,
हम तभी तो चल रहे।।

काँपते हाथों में भी है,
प्यार की ताकत अभी।
अपने अनुभव के खजाने
बाँटिए हमसे कभी।
भूल हमसे हो कभी तो
माफ भी करते रहें....
थामकर उँगली चलाया,
हम तभी तो चल रहे।।

(मेरे प्यारे मम्मी पापा को समर्पित )

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी रचना है | मन को भीतर तक भिगो देने वाली

    जवाब देंहटाएं
  2. काँपते हाथों में भी है,
    प्यार की ताकत अभी।
    अपने अनुभव के खजाने
    बाँटिए हमसे कभी।
    भूल हमसे हो कभी तो
    माफ भी करते रहें....
    थामकर उँगली चलाया,
    हम तभी तो चल रहे।।///////
    बहुत बढिया प्रिय मीना ! माता -पिता के प्रति कृतज्ञता दर्शाना कोई बेटियों से सीखे | आत्मीयता से ओत -प्रोत अत्यंत भावभीनी रचना जिसका शब्द शब्द हृदयस्पर्शी है | माता- पिता के सानिध्य का साक्षी आत्मीय चित्र रचना के भावों को विस्तार दे रहा है | हार्दिक बधाई भावपूर्ण रचना के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. सादर प्रणाम पर पूज्य माता-पिता को।
    दी शब्द नहीं मिल रहे क्या लिखूँ।
    भावुकता से लबालब मात्र स्नेह ही स्नेह तैर रहा मन की नदी से।
    ----
    प्रणाम दी
    सादर।

    जवाब देंहटाएं
  4. काँपते हाथों में भी है,
    प्यार की ताकत अभी।
    अपने अनुभव के खजाने
    बाँटिए हमसे कभी।
    भूल हमसे हो कभी तो
    माफ भी करते रहें....
    थामकर उँगली चलाया,
    हम तभी तो चल रहे।।
    माता-पिता के प्रेम और सम्मान में जो भाव बस मन में रह जाते हैं कहने में नहीं आ पाते उन्हें शब्दों में ढ़ाला हैं आपने...
    बहुत ही अद्भुत एवं अविस्मरणीय ....
    लाजवाब सृजन
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं