गुरुवार, 1 फ़रवरी 2018

शब्दों में प्यार कहूँ कैसे ?

परिभाषित प्रेम को कैसे करूँ,
शब्दों में प्यार कहूँ कैसे ?
जो वृंदावन की माटी है,
उसको श्रृंगार कहूँ कैसे ?

प्रेम नहीं, शैय्या का सुमन,
वह पावन पुष्प देवघर का !
ना चंदा है ना सूरज है,
वह दीपक है मनमंदिर का !
है प्यार तो पूजा ईश्वर की,
उसको अभिसार कहूँ कैसे ?

           परिभाषित प्रेम को कैसे करूँ,
           शब्दों में प्यार कहूँ कैसे ?

नयनों का बंदी अश्रु प्रेम,
जिसको बहने की राह नहीं !
वह अतल हृदय की गहराई,
पाओगे उसकी थाह नहीं !
जो मीरा - श्याम का नाता है,
उसको संसार कहूँ कैसे ?

            परिभाषित प्रेम को कैसे करूँ,
            शब्दों में प्यार कहूँ कैसे ?

जब मन की सूनी घाटी से,
काँटों की राह गुजरती है !
तब हिय के कोरे कागज पर,
प्रियतम की छवि,उभरती है !
है प्रेम तो, नाम समर्पण का,
उसको अधिकार कहूँ कैसे ?
          
             परिभाषित प्रेम को कैसे करूँ,
             शब्दों में प्यार कहूँ कैसे ?

3 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 09 मार्च 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. सच
    प्रेम को आज तक कौन लिख पाया है
    सब ने केवल कोशिश की है।
    निर्मल भाव आनंदित कर गया।
    नई पोस्ट - कविता २

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर सृजन मीना जी।
    अनुपम मनभावन।

    जवाब देंहटाएं