सोमवार, 12 फ़रवरी 2018

तेरी अत्फ़ की है आरजू

निर्गुण भजनों में ईश्वर के निराकार रूप का ध्यान और देह की नश्वरता के प्रति चेतावनी होती है तो कुछ भजन या प्रार्थनाएँ ऐसी होती हैं जिसमें ईश्वर को ही अपना प्रेमी, दिलबर और महबूब मानकर उससे मिलने की तड़प जाहिर होती है। ऐसे हकीकी इश्क को हम सूफी कलामों या भजनों में महसूस कर सकते हैं । अपने साथ कदम कदम पर जिस महबूब को महसूस करती हूँ, उसके प्यार में डूबी मेरी दो रचनाएँ -       
             (3)
तेरी अत्फ़ की है आरजू
नहीं और कुछ हसरत मेरी,
तूने जो दिया, तेरा शुक्रिया !
जो नहीं दिया, रहमत तेरी !
तेरी अत्फ़ की है आरजू ......

तू जहां का बादशाह है,

तुझे मेरे जैसे हैं कई !
तेरी हर रज़ा मेरी खुशी,
तेरा इश्क है किस्मत मेरी !
तेरी अत्फ़ की है आरजू .....

तेरे प्यार पर मेरा हक बढ़ा,

मुझे पास अब अपने बुला !
यहाँ दिल नहीं लगता मेरा,
बस चाहिए सोहबत तेरी !
तेरी अत्फ़ की है आरजू .....

इज़हार मैंने कर दिया,

अब तुझको इख्त्तियार है !
तेरे रहम से मेरी जिंदगी,
तेरे नूर से कीमत मेरी !
तेरी अत्फ़ की है आरजू .....
(अत्फ़ - कृपा)
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                   (4)
कभी तुझसे कोई शिकायत नहीं हो
चाहे जैसे रहूँ चाहे जो भी सहूँ !
कभी तुझसे कोई....

तू परछाईं जैसे मेरे संग रहना
ये संसार अपना लगे चाहे सपना,
मैं सब में हमेशा तुझे खोज लूँ !
कभी तुझसे कोई ....

बढे चाहे जिम्मेदारियों का बोझ जितना
रहे मुझसे दुनिया खफा चाहे कितना,
मैं आँचल तेरे प्यार का ओढ लूँ !
कभी तुझसे कोई...

मिले वक्त थोड़ा , रहे काम ज्यादा
ना भूलूँ कभी जो किया तुझसे वादा,
मैं साए में तेरे हमेशा रहूँ !
कभी तुझसे कोई...

भटकने लगूँ गर मैं राहों से अपनी
तो तू रोक देना निगाहों से अपनी,
मैं हर वक्त तेरी नजर में रहूँ !
कभी तुझसे कोई...

कभी तुझसे कोई शिकायत नहीं हो
चाहे जैसे रहूँ चाहे जो भी सहूँ !
कभी तुझसे कोई..

                       - मीना शर्मा -
(क्रमश:)

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