शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

सखि, तू सज सोलह श्रृंगार !

भजन गाने और संग्रह करने का शौक विरासत में मिला पापा से.... किशोरावस्था से ही बहनों के साथ मिलकर भजनों की तुकबंदी करते और महिला संकीर्तन में गाया करते । मुझे सगुण की अपेक्षा निर्गुण भजन अधिक भाते रहे हैं। जीवन की नश्वरता के प्रति चेताते ऐसे ही कुछ निर्गुण भजन मेरी लेखनी से प्रस्तुत हैं -
             ( 1 )
सखि, तू सज सोलह श्रृंगार !
जाने प्रियतम कब आ जाएँ,
खोले रखना द्वार !
सखि, तू सज सोलह श्रृंगार !

सुंदर सी अल्पना सजाना
लेना चौक बुहार !
नवपल्लव पुष्पों का द्वारे,
बाँधो वंदनवार !

प्रिय की राहों फूल बिछाना,
रखना दीप हजार !
अँखियों को ना हटने देना,
पथ से एक भी बार !

थाल सजाकर तब, पूजा का
हो जाना तैयार !
डोली ले प्रियतम आएँगे,
होंगे साथ कहार !

घड़ी मिलन की, साथ सजन का
अपलक उन्हें निहार !
जग झूठा और साजन साँचे,
अँसुअन पाँव पखार !

मंगल बेला, आनंद उपजे
छूटें विषय - विकार !
देस बेगाना, छोड़ के जाना
कैसा सोच - विचार !

सखि, तू सज सोलह श्रृंगार !
जाने प्रियतम कब आ जाएँ,
खोले रखना द्वार !
सखि, तू सज सोलह श्रृंगार !
------- मीना शर्मा -------
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें