रविवार, 11 फ़रवरी 2018

सुन मेरे हंसा लाड़ले !

भजन गाने और संग्रह करने का शौक विरासत में मिला पापा से.... किशोरावस्था से ही बहनों के साथ मिलकर भजनों की तुकबंदी करते और महिला संकीर्तन में गाया करते । मुझे सगुण की अपेक्षा निर्गुण भजन अधिक भाते रहे हैं। जीवन की नश्वरता के प्रति चेताते ऐसे ही कुछ निर्गुण भजन मेरी लेखनी से प्रस्तुत हैं -
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सुन मेरे हंसा लाड़ले,
तुझे कौन देस है जाना ?
कौन देस है जाना रे,
तेरा कितनी दूर ठिकाना ?
सुन मेरे हंसा लाड़ले.....

नाम का तार, जाप की भरनी,
बुन ले ताना - बाना !
जग सोए, तू जागे रहना,
कर्मजाल सुलझाना !
सुन मेरे हंसा लाड़ले.....

तेरा दूध सा उजला तन है रे हंसा,
दाग ना इसे लगाना !
पाँच शिकारी तुझे घेरके बैठे,
मुश्किल है बच पाना !
सुन मेरे हंसा लाड़ले.....

हंसा, तू मोती ही चुगना,
दाने तू मत खाना !
आत्मसरोवर डेरा है तेरा
मार्ग नहीं बिसराना !
सुन मेरे हंसा लाड़ले....

सुन मेरे हंसा लाड़ले,

तुझे कौन देस है जाना ?
कौन देस है जाना रे,
तेरा कितनी दूर ठिकाना ?
-- मीना शर्मा --
(क्रमशः)


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