रविवार, 7 जनवरी 2018

सृजन - गीत

सृजन में संलग्न होकर
निर्मिती के गीत गा लो,
प्रेम-पथ पर है घना तम,
दीप निष्ठा का जला लो !
          सृजन में संलग्न होकर....

वेदना,पीड़ा,व्यथा, को
ईश का उपहार समझो,
तुम बनो शिव,आज परहित
इस हलाहल को पचा लो !
         सृजन में संलग्न होकर.....

नीर को, अब क्षीर से,
करना विलग तुम सीख भी लो,
उर-उदधि को कर विलोड़ित,
नेह के मोती निकालो !
          सृजन में संलग्न होकर.....

गहन गहरी कंदरा सा,
हृदय तल पाया है तुमने !
खोज लोगे रत्न अनगिन
मन जरा अपना खंगालो !
         सृजन में संलग्न होकर....
          

10 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  2. वाह मीना जी छायावादी रचनाकारों की प्रतिछाया सी बहुत ही सुंदर ,सुघड़ सरस रचना, भाव प्रधान ।

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  3. सृजन में संलग्न होकर
    निर्मिती के गीत गा लो,
    प्रेम-पथ पर है घना तम,
    दीप निष्ठा का जला लो !
    आपकी उत्कृष्ट लेखन शैली का जादू सर चढ़कर बोल रहा है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया ।

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  4. आप सभी का बहुत बहुत आभार।

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 24 फरवरी 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. वाह!मीना जी ,खूबसूरत सृजन ।

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  7. बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति।

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  8. वेदना,पीड़ा,व्यथा, को
    ईश का उपहार समझो,
    तुम बनो शिव,आज परहित
    इस हलाहल को पचा लो

    बहुत खूब ,सही कहा आपने जैसे ख़ुशी और हँसी के दिए वरदान हैं वैसे ही वेदना को भी उन्ही का उपहार मान ले तो पीड़ा होगी ही नहीं
    ,अध्यात्म से जोड़ता बेहद भावपूर्ण सृजन मीना जी ,सादर नमन

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