रविवार, 28 जनवरी 2018

बावरी ख्वाहिश का क्या ?

बावरे मन की,
बावरी ख्वाहिश !
बावरी ख्वाहिश का क्या ?
पूरी ना होगी,
ना होनी थी जो,
पगली सी ख्वाहिश का क्या ?

कागज की कश्ती में
दरिया को कोई,
पार करे भी तो कैसे ?
ज़िंदा ख्वाबों को
दफनाए केैसे,
कॊई मरे भी तो कैसे ?

आजमाया दुनिया ने
आजमा लो तुम भी,
अब आजमाइश का क्या ?
बावरे मन की
बावरी ख्वाहिश !
बावरी ख्वाहिश का क्या ?

प्रेम गर पाप है
तो कुदरत है पापी,
पापी हुआ रब !
बूँदों को बाँधे थी
पलकों की डोरी,
खुलने लगी अब !

दिखती ना छुपती,
जलती ना बुझती,
अब ऐसी आतिश का क्या ?
बावरे मन की,
बावरी ख्वाहिश !
बावरी ख्वाहिश का क्या ?

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