शनिवार, 13 जनवरी 2018

तल्खियाँ

ज़िंदगी की तल्खियाँ, कुछ यूँ छुपाईं दोस्तों
दर्द की स्याही से लिख, गीतों में गाईं दोस्तों !

डूबना था कागजों की कश्तियों को एक दिन
वक्त से पहले किसी ने, क्यों डुबाईं दोस्तों !

कह गया कुछ राज की बातें, मेरा नादान दिल
अब लगे, उस अजनबी को क्यों सुनाई दोस्तों !

कुछ तड़प,कुछ बेखयाली और कुछ गफलत मेरी, 
उफ ! मोहब्बत नाम की, आफत बुलाई दोस्तों !

अपनी साँसों का गला, घोंटा किए हर एक पल
दिल लगाने की सज़ा, इस तरहा पाई दोस्तों !

यूँ लबों को मुस्कुराने की, ये आदत डाल दी
बहती आँखें, क्यों किसी को दें दिखाई दोस्तों !

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