वीणावादिनी ! वरदहस्त तुम
मेरे सिर पर धर देना !
अपनी कृपा के सुमनों से माँ,
आँचल मेरा भर देना !
मैं नहीं योग्य, मैं नहीं शुद्ध,
ना निर्मल मन, ना मति प्रबुद्ध,
माँ अपनी दयावृष्टि करके
हर पातक मेरा हर लेना !
अपनी कृपा के सुमनों से माँ,
आँचल मेरा भर देना !
माँ, ज्ञानकोष है सागर सम
यह रिक्त कभी ना हो सकता,
जितना बाँटूँ, बढ़ता जाए
इतना ही मुझको वर देना !
अपनी कृपा के सुमनों से माँ,
आँचल मेरा भर देना !
तुमसे पाकर, तुमको अर्पण
करने में सकुचाता है मन,
सुन लेना बालक का क्रंदन,
बस यही अनुग्रह कर देना !
अपनी कृपा के सुमनों से माँ,
आँचल मेरा भर देना !
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 16 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंजी दी प्रणाम।
जवाब देंहटाएंयूँ तो मुझे आपकी सभी कविताएँ प्रिय हैं किंतु कुछ कविताओं के बोल हमेशा याद रह गये,आपकी लिखी यह कविता उनमें से एक है। जितनी बार भी पढ़ूँ सहज,सरल भाव प्रवाह, कोमल और अति सुंदर प्रार्थना के स्वर अंतर्मन को छू जाते हैं।
स्नेह स्वीकार करें।
सादर।
बहुत खूबसूरत प्रार्थना,जय मां वीणापाणि
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