बुधवार, 10 जनवरी 2018

चिट्ठियाँ

चिट्ठियाँ,
होती थीं दस्तावेज प्यार का,
तकरार का, लगाव का,
हर उतार - चढ़ाव का !
वे कागज के टुकड़े,
कर देते कभी दिलों के टुकड़े,
तो कभी टूटे दिलों को,
जोड़ भी देती थीं चिट्ठियाँ !

अमानत की तरह खास
सँभालकर रखी जाती,
दिल में भी, घर में भी ।
बाबूजी की वह संदूक,
माँ का लाल रेशमी थैला,
सहेजी जाती थी गहनों सी,
उनमें कुछ खास चिट्ठियाँ !

किसी के स्वर्गवास का
दुःखद संदेश लाते,
वे कोने कटे पोस्टकार्ड,
ब्याह सगाई का निमंत्रण देते,
हल्दी रोली के छींटे पड़े,
वे पीले लाल लिफाफे,
चाचाची के अंतर्देशीय,
मौसी की बैरंग चिट्ठी,
राखी की नाजुक डोर सी,
कलेजे की कोर सी चिट्ठियाँ !

वाट्स एप में सिमट गए,
आज वे रिश्ते नाते
वे खूबसूरत ग्रीटिंग कार्ड,
अब नहीं आते !!!!
बचे खुचे कुछ खत 
रखे हैं सँभालकर कि
बता सकूँ आने वाली पीढ़ियों को - 
"देखो, ऐसी होती थी चिट्ठियाँ !"
कभी आती थी चिट्ठियाँ !!!!


1 टिप्पणी:

  1. अमानत की तरह खास
    सँभालकर रखी जाती,
    दिल में भी, घर में भी ।
    बाबूजी की वह संदूक,
    माँ का लाल रेशमी थैला,
    सहेजी जाती थी गहनों सी,
    उनमें कुछ खास चिट्ठियाँ !....बहुत सुन्दर सखी
    सादर

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