शनिवार, 27 जनवरी 2018

तितली

ना उसके ओंठ हिलते थे,
ना कोई राग बहता था,
मगर रंगीन पंखों को,
वो जिस दम फड़फड़ाती थी,
कोई नगमा मचलता था
हवाएँ गुनगुनाती थीं !!!

बहारों का संदेशा ले,
वो जब उड़ती थी, थमती थी,
सरसराते थे रंग जीवंत होकर
फूल-फूल में, कली-कली में !
उतर आते थे शाखों पर,
फ़िजाओं में, हजारों रंग बिखरते थे !!!

कोई सैय्याद गुलशन में
लगाए घात बैठा था !!!
बड़ी नापाक नजरों से
लगाए ताक बैठा था !!!
वो अनजान सी बेखबर घूमती थी
फूलों से मिलती, कली चूमती थी !

लगी हाथ जालिम के, कसमसाई
वो नन्ही सी जान, नहीं छूट पाई !
सहमा सा गुलशन, सहमी सी बगिया,
खामोश सारे, फूल और कलियाँ !
तड़पकर वो अपना, दम तोड़ती है,
हत्यारी उंगलियों पर भी, रंग छोड़ती है !!!


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