रविवार, 26 नवंबर 2017

बूँद समाई सिंधु में !

प्रीत लगी सो लगि गई,
अब ना फेरी जाय ।
बूँद समाई सिंधु में,
अब ना हेरी जाय ।।

हिय पैठी छवि ना मिटे,
मिटा थकी दिन-रैन ।
निर्मोही के संग गया,
मेरे चित का चैन ।।

परदेसी के प्रेम की,
बड़ी अनोखी रीत ।
बिना राग की रागिनी,
बिना साज का गीत ।।

नयन भरे तो यों भरे,
हो गए नदी - समंद ।
कस्तूरी मृग बावरा,
खोजत फिरे सुगंध ।।

पुष्प-पुष्प फिरता भ्रमर,
रस चाखे, उड़ि जाय ।
मुरझाए, सूखे सुमन,
तब भँवरा नहिं आय ।।

पिहू-पिहू पपिहा करै,
घन को ताके मोर ।
प्रीति हमारी जानिए,
जैसे चंद्र - चकोर ।।
              --- मीना शर्मा ----

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