रविवार, 3 दिसंबर 2017

ढूँढ़े दिल !

अंजानों की इस बस्ती में,
कोई पहचाना ढूँढ़े दिल !
मंदिर-मंदिर,मस्जिद-मस्जिद,
यूँ रब का ठिकाना ढूँढ़े दिल !

तेरी गलियों में आ पहुँचा है
भटक-भटक कर दीवाना,
अब ज़ब्त नहीं होते आँसू,
रोने का बहाना ढूँढ़े दिल !

जन्मों की बातें रहने दो
कुछ और मुलाकातें दे दो,
इक जन्म में,सातों जन्मों के,
वादों का निभाना ढूँढ़े दिल !

हर शे'र पे आह निकलती थी
हर मिसरे पे बहते थे आँसू,
वो खूने ज़िगर से लिखी हुई,
गज़लों का जमाना ढूँढ़े दिल !

आँखों में नूर मुहब्बत का
साँसों में वफा की खुशबू हो,
इखलास हो लफ्जों में जिसके,
ऐसा दीवाना ढूँढ़े दिल !

1 टिप्पणी:

  1. जन्मों की बातें रहने दो
    कुछ और मुलाकातें दे दो,
    इक जन्म में,सातों जन्मों के,
    वादों का निभाना ढूँढ़े दिल !
    बहुत खूब प्रिय मीना | २०१७ की कविताओं को पढ़ना एक यादगार अनुभव है | आँखें नम हो जाती हैं वो जमाना याद करके |

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