मंगलवार, 14 नवंबर 2017

बालदिवस के अवसर पर

सुबह-सुबह मुझसे जैसे ही मिलते हो तुम,
बगिया में खिलते से फूल लगते हो तुम।

पक्षियों की भाँति चहचहाते रहते हो तुम,
हरदम दिल के करीब रहते हो तुम ।
पक्षी उड़ें आसमान, आप दौड़ें कॉरीडोर,
लगभग दोनों ही समान लगते हो तुम ।।
सुबह-सुबह मुझसे....

यूनीफॉर्म के नाम पर, एकदम 'कूल' हो,
लाइट पंखा अक्सर, बंद करना जाते भूल हो।
रीडिंग के नाम पे हो जाते आप बोर हो,
मेरे लिए फिर भी, पतंग वाली डोर हो।।

चलते पीरियड में जाने कहाँ खोए रहते हो,
पीटी जाने के ही तुम सपने सजाते हो।
भोले बन जाते हो टीचर की नजर पड़ते ही,
छुट्टी का नोटिस देख, फूले ना समाते हो ।।

टीचर पढ़ाने की जैसे ही शुरूआत करें,
आप अपने मित्रों से, बातों की शुरूआत करें।
अनगिनत बहाने-कभी पेट,कभी सिरदर्द
कितने ही दर्दों की दुकान लगते हो तुम !!!
सुबह-सुबह मुझसे.....

दर्दों का कोई रंग-रूप नहीं होता है,
वैसे ही कॉपी का काम पूरा नहीं होता है।
सबमिशन की डेट कभी सुनते नहीं हो आप,
अदालत में चलते मुकदमे की भाँति आप
तारीखों पे तारीखें बढ़ाते चले जाते हो,
फिर भी मेरे मन को बहुत ही लुभाते हो ।।

आज पेन नहीं, कल कॉपी नहीं होती है,
स्कूल डायरी बैग में, शायद ही कभी होती है।
पूछूँ जो किताब, बोलें - I forgot mam,
कहके, मेरे बीपी को बढ़ाते चले जाते हो ।

कंप्यूटर के मामले में टीचर्स से आगे हो तुम,
स्मार्टबोर्ड चलाना, टीचर्स को सिखाते हो।
चाहे जितनी डाँट खाओ, टीचर से साल भर,
'हैप्पी टीचर्स डे' फिर भी विश करके जाते हो।

आखिर तो बच्चे हो, दिल के बड़े सच्चे हो,
मेरे दिल में छुपी हुई माँ को जगाते हो।
ज़िंदगी में किसी भी मुकाम पर पहुँच जाओ,
शिक्षकों को अपने, तुम कभी ना भुलाते हो।

तुम मेरे मन को, बहुत ही लुभाते हो !
तुम मेरे मन को, बहुत ही लुभाते हो !!
सुबह- सुबह मुझसे......
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(यह कविता मेरी नहीं है। किसकी है, मैं नहीं जानती। बच्चों को सुनाने के लिए अच्छी कविताओं की खोज में मैं सदा ही रहती हूँ, ये जानकर मेरी एक सहेली द्वारा यह मुझे प्रेषित की गई । इसके आखिरी दो छंद मैंने जोड़े हैं और इसे सुनाने पर बच्चे बहुत ज्यादा खुश हुए। शायद इसलिए कि एक तो इसमें कोई नसीहत नहीं दी गई है और दूसरा यह कि यह वैसी हिंदी में है, जैसी बच्चे बोलते हैं आजकल । जो भी हो, बच्चों के चेहरे पर हँसी तो आई। कविता के रचयिता जो भी हों, मैं सारा श्रेय उन्हें देती हूँ। आभार ।)

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