सोमवार, 6 नवंबर 2017

नग़मों का आना जाना है !

बुननी है फिर आज इक ग़ज़ल
लफ्जों का ताना - बाना है !
तेरे दिल से मेरे दिल तक
नग़मों का आना जाना है !

कह भी दो, दिल की दो बातें
प्यार सही, तकरार सही !
बातों-बातों में बातों से
पागल दिल को बहलाना है !

वक्त ज़िंदगी कितना देगी,
तुम जानो ना मैं जानूँ !
सपनों में आकर मिल लेना
कुछ लम्हों का अफसाना है !

किससे सीखा ओ जादूगर,
पढ़ना अँखियों की भाषा  ?
खामोशी में राज़ नया कुछ
हमको तुमसे कह जाना है !

रूठ सको तो रूठे रह लो,
नहीं मनाने आएँगे अब !
इतना कह दो बिन बादल के
सावन को कैसे आना है ?

तेरे दिल से मेरे दिल तक
नग़मों का आना जाना है !

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें