मौन की सड़क पर
पड़ी रही एक रिश्ते की
लावारिस लाश रात भर !!!
आँसुओं ने तहकीकात की,
राज खुला !
किसी ने जिद और अहं का
छुरा भोंककर
किया था कत्ल उस रिश्ते का !
नंगी लाश लावारिस
पड़ी रही बेकफन रात भर !
कौन था उसका,
जो करता अंतिम संस्कार
सम्मान के साथ !
पोस्टमार्टम यानि चीरफाड़
जरूरी थी, हुई ।
हत्या आखिर हत्या है,
इंसान की हो या रिश्ते की !
दिन के पहले पहर
संवेदनाओं का चंदा इकठ्ठा किया
एक भले आदमी ने !
जैसे तैसे हासिल किया लाश को
तैयारी हो गई अंतिम यात्रा की !
सवाल अब भी था,
दफनाएँ या जलाएँ ?
कैसे पता चले इस रिश्ते का धर्म ?
तभी लाश कराही,
हैरान थे सब, एक आवाज आई -
"मैं मुहब्बत हूँ, दफना दो,
मैं प्रेम हूँ, जला दो !
निर्णय नहीं कर पाओ तो
मुझे नदी में बहा दो !
मेरे कुछ कण जल में मिलकर
धो सकें उसके कदमों को
जिसने मेरा कत्ल किया !
कह देना इतना ही उससे जाकर
मैंने उसे माफ किया !
मैंने उसे माफ किया !!
मैंने उसे माफ किया !!!"
पड़ी रही एक रिश्ते की
लावारिस लाश रात भर !!!
आँसुओं ने तहकीकात की,
राज खुला !
किसी ने जिद और अहं का
छुरा भोंककर
किया था कत्ल उस रिश्ते का !
नंगी लाश लावारिस
पड़ी रही बेकफन रात भर !
कौन था उसका,
जो करता अंतिम संस्कार
सम्मान के साथ !
पोस्टमार्टम यानि चीरफाड़
जरूरी थी, हुई ।
हत्या आखिर हत्या है,
इंसान की हो या रिश्ते की !
दिन के पहले पहर
संवेदनाओं का चंदा इकठ्ठा किया
एक भले आदमी ने !
जैसे तैसे हासिल किया लाश को
तैयारी हो गई अंतिम यात्रा की !
सवाल अब भी था,
दफनाएँ या जलाएँ ?
कैसे पता चले इस रिश्ते का धर्म ?
तभी लाश कराही,
हैरान थे सब, एक आवाज आई -
"मैं मुहब्बत हूँ, दफना दो,
मैं प्रेम हूँ, जला दो !
निर्णय नहीं कर पाओ तो
मुझे नदी में बहा दो !
मेरे कुछ कण जल में मिलकर
धो सकें उसके कदमों को
जिसने मेरा कत्ल किया !
कह देना इतना ही उससे जाकर
मैंने उसे माफ किया !
मैंने उसे माफ किया !!
मैंने उसे माफ किया !!!"
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
११ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,
हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंगजब !! सांकेतिक भाषा में रिश्तों के टूटते स्वरूप पर चिंता और चिंतन करती गहन रचना।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएं"मैं मुहब्बत हूँ, दफना दो,
जवाब देंहटाएंमैं प्रेम हूँ, जला दो !
निर्णय नहीं कर पाओ तो
मुझे नदी में बहा दो !
मेरे कुछ कण जल में मिलकर
धो सकें उसके कदमों को
जिसने मेरा कत्ल किया !
कह देना इतना ही उससे जाकर
मैंने उसे माफ किया
हृदयस्पर्शी ,लाजबाब सृजन ,मीना जी