शनिवार, 11 नवंबर 2017

लावारिस लाश

मौन की सड़क पर
पड़ी रही एक रिश्ते की
लावारिस लाश रात भर !!!

आँसुओं ने तहकीकात की,
राज खुला !
किसी ने जिद और अहं का
छुरा भोंककर
किया था कत्ल उस रिश्ते का !

नंगी लाश लावारिस
पड़ी रही बेकफन रात भर !
कौन था उसका,
जो करता अंतिम संस्कार
सम्मान के साथ !

पोस्टमार्टम यानि चीरफाड़
जरूरी थी, हुई ।
हत्या आखिर हत्या है,
इंसान की हो या रिश्ते की !

दिन के पहले पहर
संवेदनाओं का चंदा इकठ्ठा किया
एक भले आदमी ने !
जैसे तैसे हासिल किया लाश को
तैयारी हो गई अंतिम यात्रा की !

सवाल अब भी था,
दफनाएँ या जलाएँ ?
कैसे पता चले इस रिश्ते का धर्म ?
तभी लाश कराही,
हैरान थे सब, एक आवाज आई -

"मैं मुहब्बत हूँ, दफना दो,
मैं प्रेम हूँ, जला दो !
निर्णय नहीं कर पाओ तो
मुझे नदी में बहा दो !
मेरे कुछ कण जल में मिलकर
धो सकें उसके कदमों को
जिसने मेरा कत्ल किया !
कह देना इतना ही उससे जाकर
मैंने उसे माफ किया !
मैंने उसे माफ किया !!
मैंने उसे माफ किया !!!"







5 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ११ नवंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  2. गजब !! सांकेतिक भाषा में रिश्तों के टूटते स्वरूप पर चिंता और चिंतन करती गहन रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. "मैं मुहब्बत हूँ, दफना दो,
    मैं प्रेम हूँ, जला दो !
    निर्णय नहीं कर पाओ तो
    मुझे नदी में बहा दो !
    मेरे कुछ कण जल में मिलकर
    धो सकें उसके कदमों को
    जिसने मेरा कत्ल किया !
    कह देना इतना ही उससे जाकर
    मैंने उसे माफ किया

    हृदयस्पर्शी ,लाजबाब सृजन ,मीना जी

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