हम सब कितने बँटे हुए हैं
इक दूजे से कटे हुए हैं !
कब, क्या कहना, किसे, कहाँ पर
सब पहले से रटे हुए हैं !
दिखने को बाहर से दिखते
जैसे बिलकुल जुड़े हुए हैं,
लेकिन जब अंदर झाँको तो
पुर्जे - पुर्जे खुले हुए हैं !
हम सब कितने बँटे हुए हैं ।
तन से कहीं, कहीं हैं मन से
कहीं नयन से, कहीं चितवन से
देख रहे सारी दुनिया को
पर खुद सबसे छुपे हुए हैं !
हम सब कितने बँटे हुए हैं ।
कितना भी तुम करो समर्पण,
कोई टुकड़ा बचा ही लोगे !
पूरा नहीं किसी का कोई ,
दिल के हिस्से किए हुए हैं !
हम सब कितने बँटे हुए हैं ।
बुद्धि बड़ी, भावना छोटी
फिर इंसान की नीयत खोटी !
उलझन, किस ईश्वर को मानें ?
धर्म - जात में फँसे हुए हैं !
हम सब कितने बँटे हुए हैं ।
हम सब कितने बँटे हुए हैं
इक दूजे से कटे हुए हैं !
कब, क्या कहना, किसे, कहाँ पर ,
सब पहले से रटे हुए हैं !