शनिवार, 8 मार्च 2025

मैं तुमसे इत्तेफाक नहीं रखती !

ये जो तुम मुझे
भेज रही हो शुभकामनाएँ
महिला दिवस की,
तुम कौन हो ?
मैं तुम्हें नहीं जानती !
मैंने तुमसे कभी 
सहानुभूति नहीं पाई
सहवेदना/ संवेदना तो दूर !
ओ स्त्री, तुम हो कौन ?
माँ, बहन, भाभी, सास
देवरानी, जेठानी, ननद
मेरी सहकर्मी
या मेरी महिला बॉस ?
या मेरी अड़ोसी - पड़ोसी
सखी - सहेली ?
क्या तुमने नहीं बनाई मेरी बातें,
नहीं काटीं मेरी जड़ें ?
नहीं की मेरी चुगली ?
कैसे मान लूँ कि ये मेरा दिवस है
या हमारा दिवस है ?
'हम' शब्द तो उनके लिए
ठीक रहता है जो जुड़े हों
हम तो बँटे ही रहे हमेशा
साथ भी आए कभी, तो 
स्वार्थ के धागे से ही जुड़े थे
कैसा महिला दिवस, कैसी शुभकामना ?
माफ करना ओ स्त्री,
मैं तुमसे इत्तेफाक नहीं रखती !

( ये मेरे अपने विचार हैं, इसके अपवाद भी हो सकते हैं )

4 टिप्‍पणियां:

  1. कड़वा है मगर किसी हद तक सच है, अक्सर सास-बहू की नहीं बनती, ननद-भाभी की भी, दफ़्तर में भी राजनीति चलती है, परिवार आपसी द्वेष और ईर्ष्या के कारण टूट जाते हैं

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में रविवार 09 मार्च 2025 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद!

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  3. योगी जी ने - 'बटेंगे तो कटेंगे' क्या महिलाओं के लिए कहा था?
    वाक़ई, ख़ुद स्त्री ही स्त्री-दमन के लिए काफ़ी हद तक ज़िम्मेदार है.

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