जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए !
जोड़ - घटा का फलित हमारी समझ ना आए !
कभी एक के जुड़ जाने से ,
खुशियाँ सहस गुना हो जाती !
कभी एक का ही घट जाना ,
सब कुछ शून्य बना जाता है ।
हिम्मत को सौ गुना बनाता ,
एक हाथ का हाथ पकड़ना
दुःख को कई गुना कर देता ,
बिन गलती के सजा भुगतना ।
समीकरण अभिमान - स्वार्थ के
कर देते हैं चकित, हमारी समझ ना आए !
जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए ।
अजब हिसाब लाभ - हानि का,
देन लेन की गज़ब है गणना
किसके साथ बनाना आयत,
किसके साथ वृत्त की रचना ।
क्ष का मान बढ़ाना हो तो,
य का मान कहाँ कम करना
प्रतिच्छेदी रेखाओं का कब,
किस बिंदु, किस कोण पे कटना ?
क्या यह सब पहले से तय है ?
कैसे होता घटित, हमारी समझ ना आए !
जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए ।
दो में करके हृदय विभाजित,
क्यों खुद को आधा करता है
सूत्रों के जंजाल में फँसना,
जीवन में बाधा करता है ।
मन से मन की दूरी को,
मन ही तो कम-ज्यादा करता है
एक तीर से कई निशाने,
लक्ष्य कई साधा करता है ।
मानव का यह छद्म वेष, यह
असली - नकली चरित हमारी समझ ना आए !
जीवन का यह गणित हमारी समझ ना आए ।
जोड़ - घटा का फलित हमारी समझ ना आए !
बहुत सुंदर कहा है !
जवाब देंहटाएंजीवन का गणित सरल नहीं
जवाब देंहटाएंचख अमृत घट बस गरल नहीं
पीड़ा की गाँठों को छूकर प्रिय
नेह बूँद सरस भर जाता है
तृषित भ्रमर की लोलुपता
मन उलझन में पड़ जाता
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अति सारगर्भित अभिव्यक्ति दी।
सस्नेह प्रणाम दी
सादर
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २१ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बहुत ही प्यारी रचना!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी और सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबधाई