आग लगने की तके है
राह जहरी मीडिया
घी लिए तैयार बैठा,
घी लिए तैयार बैठा,
वाह जहरी मीडिया !
धर्म, जाति, कौम के
रंग में रंगे हर रूह को
विषबुझे तीरों से करता
विषबुझे तीरों से करता
वार जहरी मीडिया !
चैनलों के कटघरे में
हैं खड़े राम औ रहीम
कभी वकील है, कभी
कभी वकील है, कभी
गवाह जहरी मीडिया !
हल निकल सकता जहाँ
खामोशियों से खुद-ब-खुद
चीखता है बेवजह,
बेपनाह जहरी मीडिया !
बस दूध के उबाल सा
उफने है चंद रोज,
पकड़े है फिर अगली खबर
पकड़े है फिर अगली खबर
की राह जहरी मीडिया !
जनता छली जाती रही ,
सच की तलाश में
देता रहा बस मुफ्त की
देता रहा बस मुफ्त की
सलाह जहरी मीडिया !
आजकल की न्यूज में न्यूज के अलावा सबकुछ होता है । केवल टीआरपी चाहिए । जनता का सरोकार तो मानो टूट ही गया है ।
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
हटाएंआपने ते मीडिया दी पोल खोल दी।
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंआज के दौर में सिवाय सनसनी फैलाने के इनकी शायद कोई जिम्मेदारी सची नहीं है शायद... मीडिया को खरी-खरी सुनाती जनता को जागरूक करती लाज़वाब रचना दी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह प्रणाम दी
सादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ११ मार्च २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सस्नेह धन्यवाद
हटाएंसटीक विश्लेषण, जबकि मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा गया है, फिर भी कुछ स्वतंत्र लोग अब भी सोशल मीडिया पर सत्य कह सकते हैं, इतनी तो आज़ादी भारत में है
जवाब देंहटाएंसादर धन्यवाद
हटाएंजनता छली जाती रही ,
जवाब देंहटाएंसच की तलाश में
सुंदर विचार
आभार
सादर
सादर आभार
हटाएंजहर जहर फैलाना है मीडिया बस एक बहाना है | सुन्दर |
जवाब देंहटाएंसादर आभार सर
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