गुरुवार, 3 मई 2018

सफेद रंग

जन्म लेते ही, आँखें खोलते ही,
जो सबसे पहली चीज देखी मैंने
वो ये, कि सफेद रंग है
मेरे कमरे की हर दीवार का !
और कुछ बड़ा होने पर पाया
कि मेरे मन के चारों ओर 
एक पर्दा सा खिंचा है सफेद रंग का !

गुड़िया, खिलौने, मेरे बिछौने
शुभ्र सफेद !
फूल, तितलियाँ, पंछी, झरने
झक्क सफेद !
आसमां, जमीन, बादल, चाँद
दूध से सफेद !
इंद्रधनुष, जो अब तक रंगीन था,
वह भी सफेद !

तब से अब तक,
मेरा ज्यादातर समय बीतता है
इन सबको धोने पोंछने में !
दाग भी तो जल्दी लगते हैं ना
सफेद चीजों पर !
माँ कहती है -
चौबीसों घंटे क्या साफ करती हो,
जब देखो तब,
झाड़ू - पोंछा ही दिखे है हाथ में !

कैसे बताऊँ माँ को
कि घुट्टी में पिलाई हुई,
शुचिता, निष्कलंकता, निर्मलता को
स्त्रीत्व से जोड़ती तेरी सीख
मेरी रगों में उतर गई !!!
कि तेरे दूध का रंग 
मेरी आत्मा में उतर गया !!! 
उस पर दाग ना लगे, इसी डर से
मैंने अपने आप को कभी
चैन से सोने भी ना दिया !

अब हर पल इस डर में जीती हूँ,
कि मैली ना हो जाऊँ कहीं !
सपने में देखती हूँ -
चारों ओर  धूल की आँधी है,
कीचड़ के छीटें हैं,
काली स्याही के धब्बे हैं !

आधी रात में चौंककर उठती हूँ
कि मेरे चारों ओर फैली 
शुभ्र सफेद दुनिया पर 
कोई दाग तो नहीं लग गया ?
अपने वहम का हर दाग
खरोंच खरोंचकर, रगड़कर मिटाती हूँ,
खुश हो लेती हूँ कि सब ठीक है !

कुछ समय बाद
फिर वही डर, वही वहम,
कि सफेद रंग मैला ना हो जाए 
फिर झाड़ - पोंछ,
फिर दो पल की खुशी.....
ज़िंदगी यूँ ही गुजर गई !!!

ओ रंगों के सौदागर !
पास मत आना,
तुम्हारे रंगों से डर लगता है !
लौट जाओ,
कि तुम्हारे रंग बड़े पक्के हैं
और मेरे चारों ओर की
हर चीज सफेद है !!!








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