गुरुवार, 24 मई 2018

जरूरत क्या दलीलों की !

हँसेंगे लोग तुम पर, बात ना करना उसूलों की
मोहब्बत की, वफा की, प्यार की बातें फ़ुज़ूलों की।

लगाएँगे ठहाके, पीटकर ताली हँसेगे सब
चलो बचकर, यहाँ माफी नहीं मिलती है भूलों की।

झूठ तो राज करता है, बिना ही तख्तो-ताज के
यहाँ दरकार है सच को वकीलों की, अपीलों की।

जश्न में लोग जितने थे, जनाजे में कहाँ उतने
कहाँ चाहे कोई काँटे, सभी को चाह फूलों की ।

जो तुम हारे तो मैं हारी, जो तुम जीते तो मैं जीती
करूँ क्यों प्यार को साबित,जरूरत क्या दलीलों की।

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