शुक्रवार, 11 मई 2018

पैग़ाम

दिल धड़कता है तो सुन लेते हैं पैग़ाम उनका,
वो कहानी जो इक आग़ाज थी, अंजाम हुई !

हमने उस पल को कैद कर लिया है पलकों में
जब मिले उनसे मगर खुद से ही पहचान हुई !

कैसे सीखे कोई, अश्कों को रोकने का हुनर
बूँद दरिया से समंदर हुई,  तूफान हुई !

कहते हैं, बेवजह अश्कों को बहाया ना करो
सूनी आँखें बिना अश्कों के बियाबान हुई !

याद उनकी, खयाल उनके, तसव्वुर भी उनका
ज़िंदगी उनकी अमानत, दिल-ए-नादान हुई!

उनकी राहों से जब हटा लिए हमने ये कदम,
लफ्ज गुम हो गए और कलम बेज़ुबान हुई !

अब किसी और से, उम्मीद क्या वफा की करें
हमसे अपनी ही हर इक साँस बेईमान हुई !









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