सोमवार, 21 मई 2018

आस

आस तो थी तुमसे,
पर कोई खास नहीं थी ।
इतनी सी थी कि
जब सारी दुनिया खड़ी हो
मेरे विरोध में,
तब तुम को अपने साथ
खड़ा पाऊँ ।
मेरी खुद्दारी पर
तुम्हें नाज़ करता देखूँ,
मेरा स्वाभिमान ही
तुम्हारा मान - सम्मान हो और
जब दुनिया के कदम उठें
मेरा स्वाभिमान कुचलने को,
तब तुम उसे हथेलियों में समेट
अपने हृदय में छुपा लो !
लेकिन तुम्हारा अपना ही
आत्माभिमान इतना व्यापक हो गया
कि तुम्हारे हृदय में अब
किसी और के लिए जगह 
बची ही नहीं है !!!
फिर भी, 
मैं इंतजार करूँगी,
शायद कभी तुम्हारे हृदय के
किसी कोने में
जरा सी जगह मिल जाए....
मुझे नहीं, मेरी खुद्दारी को !
मुझे नहीं, मेरे स्वाभिमान को !!
मुझे नहीं, मेरी भावनाओं को !!!

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