सोमवार, 17 जुलाई 2017

बादल से संवाद

मानव :
"बादल, क्यों करते हो 
इतना पक्षपात ?
कहीं बाढ, दुर्भिक्ष कहीं,
क्यों मचा रहे उत्पात ?
माना, तुम झोली भर भरकर
नवजीवन ले आते हो,
लेकिन इन जीवनबूँदों को
सोच समझ तो बरसाओ।
सूखी धरती क्रंदन करती
पानी को ना तरसाओ ।

फटा कलेजा धरती माँ का,
दुष्कर हैं हालात !
बादल,क्यों करते हो 
इतना पक्षपात ?
ओ जल वितरण के ठेकेदार !
तुम पर भी छाया भ्रष्टाचार?

कहीं हरी चूनर पहने
इतराती है सावन तीज,
कहीं भाग्य को रोते हैं,
सूखे खेत, धरा निर्जीव !

अन्नदाता को अन्न के लाले,
कर्ज कराता आत्मघात ।
बादल,क्यों करते हो 
इतना पक्षपात ?"
बादल : ओ मानव,
सुनो जरा मेरे भी मन की,
पीड़ा मैं जानूँ जन जन की ...

मुझ पर क्यों इल्जाम लगाते,
तुम देखो अपनी करतूत !
कोप प्रकृति का महाभयंकर,
अब तुमको मिल रहा सबूत ।

नदिया सागर किए प्रदूषित
नहीं सुना वृक्षों का क्रंदन,
विषवृक्ष लगाकर स्वयं यहाँ,
पाना चाहते हो चंदनवन ?

तुमने अपने पैरों पर,
खुद किया कुठाराघात...
मानव, किया कुठाराघात !
हुए अब बेकाबू हालात !!!"




6 टिप्‍पणियां:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ९ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।,

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. बहुत खूब प्रिय मीना | बादल से मानव का संवाद और बादल का सटीक प्रतिउत्तर बहुत ही भावपूर्ण है | मानव के प्रश्न अपनी जगह है पर बादल की पीड़ा भी कम नहीं | उसकी ये पीड़ा शब्दों में ढलकर सोचने को विवश करती है कि कुछ दशक पूर्व बादल कहाँ फटते थे |लगता है बादल भी अपनी वेदना सह नापाते और अतिवृष्टि के रूप में अपना दर्द छलका रहे हैं | -- बादल का कहना कितना सही है !!!!!!!!!!!--
    नदिया सागर किए प्रदूषित
    नहीं सुना वृक्षों का क्रंदन,
    विषवृक्ष लगाकर स्वयं यहाँ,
    पाना चाहते हो चंदनवन ?

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