चलती तो धरती पर हूँ
पर बात सितारों की करती हूँ !
पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।
पिघल-पिघलकर ज्यों हिमराशि,
जलधारा बन बहती जाती
मधुर संदेशा वह पर्वत का,
खारे सागर को पहुँचाती ।
मैं भी कुछ नफरत के प्याले,
प्रीति-मधुर-रस से भरती हूँ !
पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।
कहती हूँ मन की कुछ पीड़ा,
लिखती हूँ दिल की कुछ खुशियाँ।
जीवन की बगिया से चुनकर,
लाती हूँ गीतों की कलियाँ ।
नागफनी के जंगल में, मैं
रंग नज़ारों के भरती हूँ !
पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।
पर बात सितारों की करती हूँ !
पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।
पिघल-पिघलकर ज्यों हिमराशि,
जलधारा बन बहती जाती
मधुर संदेशा वह पर्वत का,
खारे सागर को पहुँचाती ।
मैं भी कुछ नफरत के प्याले,
प्रीति-मधुर-रस से भरती हूँ !
पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।
कहती हूँ मन की कुछ पीड़ा,
लिखती हूँ दिल की कुछ खुशियाँ।
जीवन की बगिया से चुनकर,
लाती हूँ गीतों की कलियाँ ।
नागफनी के जंगल में, मैं
रंग नज़ारों के भरती हूँ !
पतझड़ है तो क्या ग़म है,
उम्मीद बहारों की करती हूँ ।।
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