रविवार, 23 जुलाई 2017

हर दौर गुजरता रहा

जिंदगी चलती रही,हर दौर गुजरता रहा,
इम्तहां पर इम्तहां ले, वक्त सरकता रहा ।

इस बार अलग था कुछ,अंदाजे-बयां उनका,
लफ्जों में छुपा खंजर,अब दिल में उतरता रहा।

आँखों में जो चमकते, टूटे वही सितारे,
हमराज मेरा, मेरे सब राज उगलता रहा ।

खुद नाव ने डुबोया जब बीच में दरिया के,
आया ना मेरा माझी, बस दूर से हँसता रहा ।

कच्चे घड़े सी ना मैं, छूते ही बिखर जाऊँ,
भट्टी में आफतों की, मजबूत दिल बनता रहा ।

कुछ तो दिया ना तूने ! चाहे दर्द हो या खुशियाँ,
हर पल तेरा शुकराना,दिल से निकलता रहा ।।
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